बहुत आसां है कहना कि बीते कल को भूल जाओ
बीती बातों को चादर की
तरह ओढ़कर सो जाओ
मैं कैसे भूल जाऊं वो लम्हे
जब तुम कॉलेज के बहाने
मुझसे मिलने आया करती
हाथों में हाथ डाले बतियाते
ना जाने कितनी घड़ियां
ऐसे ही बीत जाया करतीं
काजल की तरह मुझे
अपनी आंखों में बसा रखा था
गजरे की तरह मेरे प्यार की
खुशबू को बालों में सजा रखा था
मेरी चाहत की लाली तुम्हारे
होठों पर लिपिस्टिक बन लिपटी थी
मेरे अहसासों की छुअन भर से
तुम गुडिया की तरह सिमटी थी
इश्क की अंगड़ाई से तुम्हारा
जिस्म खिलखिलाने लगा था
यौवन के भार से नाजुक बदन
डगमग डगमगाने लगा था
एक दिन तुम मूवी देखने के
बहाने से मेरे पास आयीं थीं
वो रात हमने चांद तारों की
छांव में एक साथ बिताई थी
ना तुम कुछ बोल रही थीं
ना मैं कुछ कह पा रहा था
तुम्हारे दिल की बातें साफ साफ
मेरा दिल सुन पा रहा था
तुम्हारे हाथ का वो स्पर्श
अभी भी मेरे हाथ में रखा है
मेरे दिल में तुम्हारी बातों का
लॉकर अभी भी सुरक्षित रखा है
तुम्हारी कोई मजबूरी होगी
जो तुम मेरे साथ चल नहीं पाई
मैं अगर तुमको दोष देता हूं
तो यह होगी मेरे इश्क की रुसवाई
मैं तो तुमको बेवफा भी नहीं मानता
तुम्हारी मजबूरियों को नहीं जानता
पर इतना जानता हूं कि तुम्हारा इश्क
मेरी दौलत है, मैं इसी से जी रहा हूं ।
अब तुम ही बताओ कि मैं तुम्हें
और तुम्हारे प्यार को कैसे भूल जाऊं
तुम्हारे साथ ख्वाबों की दुनिया जो
सजाई है, उससे कैसे बाहर आ जाऊं
मैं भी मानता हूं कि यह मूर्खता है
पर दिल है कि मानता नहीं
अब तुम ही आकर इसे समझा दो
क्योंकि ये और किसी को जानता नहीं ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
26.3.22