जबसे उनसे आंखें लड़ी हैं , बिन पिए कुछ ऐसी चढी है
जलती हुई जेठ की दुपहरी लगती सावन की सी झड़ी है
धड़कनें इस कदर बढी हैं मुहब्बत की नई दासतां गढी है
ऐसा लगता है कि जिंदगी अब उसकी चौखट पर पड़ी है
हरिशंकर गोयल "हरि"
29.5.22
29 मई 2022
जबसे उनसे आंखें लड़ी हैं , बिन पिए कुछ ऐसी चढी है
जलती हुई जेठ की दुपहरी लगती सावन की सी झड़ी है
धड़कनें इस कदर बढी हैं मुहब्बत की नई दासतां गढी है
ऐसा लगता है कि जिंदगी अब उसकी चौखट पर पड़ी है
हरिशंकर गोयल "हरि"
29.5.22
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जो मन में आता है , लिखता हूं । साफ कहना, साफ दिल , साफ लिखना मुझे पसंद है । D