राम और लक्ष्मण अभी विश्वामित्र के आश्रम में ही थे कि मिथिला के राजा जनक ने विश्वामित्र को अपनी लड़की सीता के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नवेद भेजा। उस समय में परायः विवाह स्वयंवर की रीति से होते
एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के प
प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और
(२) उसने अपने दोस्त को आभार प्रकट किया। उधर गरीब भाई फू
(१)एक समय की बात है। दो भाई सफर के लिए निकले। एक भाई अमीर था तो दूसरा भाई
संतकुमार यहाँ से चले तो उनका हृदय आकाश में था। इतनी जल्दी देवी से उन्हें वरदान मिलेगा इसकी उन्होंने आशा न की थी। कुछ तकदीर ने ही जोर मारा, नहीं तो जो युवती अच्छे-अच्छों को उँगलियों पर नचाती है, उन पर
संत कुमार की स्त्री पुष्पा बिल्कुल फूल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलकी-फुलकी, लजाधुर, लेकिन एक नंबर की आत्माभिमानिनी है। एक-एक बात के लिए वह कई-कई दिन रूठी रह सकती है। और उसका रूठना भी सर्वथा नई डिजाइन का ह
एक राज्य में एक राजा शासन करते थे। अचानक एक दिन उन्हें एक गंभीर बीमारी ने आ घेरा। वे अस्वस्थ हो गए। भूख और प्यास पूरी तरह समाप्त हो जाने से उनका शरीर पीला पड़ गया और शरीर कुछ भी ना खा पाने की वजह से ज
मेरी आँखों मे हैं तेरी खुसबू मेरी सासो में ही मेरे दिल को घायल कर जाए ऐसी अदा तेरी बातो में है
कवि श्री पति जी एक निर्धन ब्राह्मण थे। साथ ही साथ वे तपस्वी, धर्म परायण और निर्भीक भगत वात्सल्य थे। राम भगवान में इनका पूर्ण विश्वास था। श्रीपति जी भिक्षा मांग कर लाते और उसी से परिवार का भरण पोषण कर
कंटालिया के सरदार शमशेर खां के मारे जाने की खबर पाते ही औरंगजेब आपे में न रहा, तुरन्त आज्ञा दी दुर्गादास को जैसे हो सके, पकड़कर हमारे सामने लाया जाय, जीता हुआ या मरा हुआ, जैसा भी हो। दूसरे ही दिन मुगल
खुदाबख्श ने कहा – ‘बेटी लालवा अपने माता-पिता की चिन्ता मत करो। मैं मुसलमान हूं; इसलिए अपने पकड़े जाने का भय तो था। ही नहीं, वहीं खड़ा रहा और सबकी सुनता रहा। थोड़ी ही देर में सारा भेद खुल गया। देशद्रोह
खुदाबख्श ने नाथू को जीता देख ईश्वर को धन्यवाद दिया और घाव धोकर पट्टी बांधी। फिर बोला भाई! मुझसे डरो मत, मैं वह मुसलमान नहीं जो किसी का बुरा चेतूं। आखिर एक दिन खुदा को मुंह दिखाना है। मेरे लायक जो काम
एक तो अंधेरी अटपटी राह, बेचारा घोड़ा अटक-अटक कर चलता था।वह अपनी ही टापों की ध्वनि सुनकर कभी पहाड़ियों से टकराकर लौटती थी, चौंक पड़ता था।पहर रात जा चुकी थी, धीरे-धीरे चारों ओर चांदनी छिटकने लगी थी। दूर
जोधपुर के महाराज जसवन्तसिंह की सेना में आशकरण नाम के एक राजपूत सेनापति थे, बड़े सच्चे, वीर, शीलवान् और परमार्थी। उनकी बहादुरी की इतनी धाक थी, कि दुश्मन उनके नाम से कांपते थे। दोनों दयावान् ऐसे थे कि म
(२) शहजादा और वनपरी को देवलोक पहुंचने में अधिक समय नहीं लगा। देवलोक पहुंचकर वे सीधा
(१)देवराज इंद्र की आज्ञा पाते ही उसके देवदूत जो उन्होंने बुलाए थे उसने उसे
ज़ील अपने पिता से बहुत प्यार करती थी। आज स्कूल से आने के बाद वह निरंतर मम्मी से पूछ रही थी। मम्मी पापा कब आएंगे? मम्मी अपने काम में व्यस्त होने के कारण खींज़कर बोली तुम्हें तो पता ही है वे रोज शाम को
एक गरीब और आलसी व्यक्ति था। वह कुछ भी कार्य नहीं करता था। उसके आलस की चर्चाएं दूर-दूर तक फैली हुई थी। 1 दिन राजा ने उसे बुलाकर कहा- तुम पैसे कमाने के लिए कोई कार्य क्यों नहीं करते? &nb
(२)क्या करता, अंत में वह उस बोतल को लेकर वापस घर लौट आया। उस समय उसकी पत्नी हाथ सेंक रही थी। जब उसने द