मैं उस औरत की बात सुनकर हक्का-बक्का उसकी तरफ देखने लगा मेरी समझ में क
नरेटर---गुफा के पास पहुंचकर विरप्पा चौंक गया। पहरेदार की तरह एक सिंह
कभी कभी हमारी जिंदिगी मे कुछ ऐसा होता है जिस पर यकीन करना हमारे लिए बहुत मुश्किल ह
तब बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा था । रमेश बड़ा ही होनहार था । उसकी मेघा केवल स्कूली शिक्ष
अगले दिन राज दरबार लगा। जैसा की सभी को विदित ही था कि वीरप्पा को आज स
जुमानी की माँ बहुत दुखी थी,पति कैंसर से मर गए। एक बेटा और बेटी सर्प दंश से काल कलवित हो गए।
क्या आपने कभी नागमणी देखा है, या फिर इस बात में यकीन रखते हैं कि नागमणी का कोई
अस्तित्व भी हो
वीरप्पा की जीत से वैभवराज खुश थे। उन्होंने दूसरे दिन राजदरबार में वीर
आसमान काली घटा से घिरा हुआ था जहाँ तक नज़र जाती दूर तक सिर्फ बादल नज़र आते शाम के 4 बज रहे थे , लेकिन
दोपहर के समय जब सभी भोजन ले रहे थे। और राजा भी अपने महल में चले गए थे
अंधेरी रात,,, सुनसान सड़क,,, और उस पर दौड़ती डॉ. बत्रा की कार। बेटवाड
सभी यौद्धाओं ने प्रत्यंचा चढ़ा रखी थी। वीरप्पा ने सबसे पहले निशाना साध
शाही परिवार और समस्त राज्य उल्लास से नाचने गाने लगे। आखिर राजा को सन्
"अवनी ओ अवनी। बेटा उठ जा। ऑफिस नहीं जाना क्या तूने!"