कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के साथ भाजपा ने पिछड़ों और अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने की सियासत भी बढ़ा दी है। क्योंकि अब नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए हैं, इसलिए आने वाले लोकसभा चुनावो में 40 सीटों की दावेदारी भी भाजपा के नेता कर रहे हैं...
राम मंदिर शुभारंभ के उत्सव और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के साथ भाजपा के सियासी तार पहले ही कसे जा चुके हैं। अब इसी के साथ बिहार में हुए सत्ता परिवर्तन और नई सरकार में लवकुश समीकरणों से जो सोशल इंजीनियरिंग का ताना-बाना बुना गया है, वह लोकसभा चुनाव की सियासी पिच को मजबूत कर रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के एनडीए के साथ आने से बिहार की 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी वाली सियासी समीकरणों पर दावेदारी मजबूत हुई है। जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार सरकार की कैबिनेट में विस्तार के साथ सोशल इंजीनियरिंग का पूरा समीकरण साधा जाना तय माना जा रहा है, जिससे भाजपा आने वाले चुनाव में खुद को स्थापित कर सके।
सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा ने भले ही नीतीश कुमार के साथ गठबंधन कर बिहार की सत्ता में वापसी की हो, लेकिन उनकी निगाह 2024 के लोकसभा चुनाव में व्यक्तिगत पार्टी के तौर पर मजबूत वापसी की है। पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रभात कुमार कहते हैं कि अगर भाजपा ने जातिगत समीकरणों के लिहाज से नीतीश कैबिनेट में बड़ा दांव खेला है। प्रभात कहते हैं कि इस बार भाजपा ने सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर न सिर्फ मजबूत चेहरे को सामने किया है। बल्कि ओबीसी में कोइरी समुदाय से सीधे तौर पर कनेक्ट बनाया है। इसी तरह भाजपा ने विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाकर अगड़ों में मजबूत दावेदारी पेश की है।
भाजपा ने तकरीबन चार फीसदी आबादी वाले कोइरी समुदाय के सम्राट चौधरी, तीन फीसदी आबादी वाले भूमिहार समुदाय के विजय कुमार सिन्हा और अति पिछड़ा वर्ग के कहार समुदाय से आने वाले प्रेम कुमार को भी कैबिनेट में जगह दी है। राजनीतिक विश्लेषक बृजेश झा कहते हैं कि अभी तक के मंत्रिमंडल में भाजपा ने भूमिहार, कोइरी और कहार समुदाय का समीकरण साधा है। जैसे ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, उसमें पूरा सोशल इंजीनियरिंग का ताना-बाना बुना जाना माना जा रहा है। बृजेश कहते हैं कि दरअसल भाजपा इस फिराक में है कि वह बिहार में एक बार उत्तर प्रदेश की तरह मजबूत सरकार बना ले। क्योंकि अभी तक भाजपा ने बिहार में अपने बलबूते पूर्ण बहुमत की सरकार अभी तक नहीं बनाई है। भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि भले ही बिहार में सरकार का कार्यकाल डेढ़ साल से काम का हो, लेकिन उनके लिए यह एक बड़ा मौका है। यही वजह है कि वह जातिगत समीकरणों के लिहाज से पिछड़ों अति पिछड़ों और सवर्णों के साथ दलितों को साधने की पूरी जुगत में है।