अयोध्या के वृद्धा महिला आश्रम में अमर उजाला की टीम पहुंची और वहां रहने वाली माताओं से उनकी पीड़ा और भगवान राम के बारे में बातचीत की। इनसे जब पूछा कि आपकी राम से क्या शिकायत है इस पर उनका जवाब सोचने पर करता है मजबूर...
राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी... इस समय आप अयोध्या में कहीं भी हों आपको ये धुन सुनने को मिल जाएगी। लेकिन जिनका आंगन ही न हो वो क्या सजाएंगे? अयोध्या की गलियां छानने के बाद मैं पहुंचा, उन 40 माताओं के आश्रम में जहां सब एक साथ आग तापने का काम कर रही थीं। गेट पर ताला था, आग्रह किया और बताया कि मैं आपसे बात करना चाहता हूं। इन्हीं माताओं के बीच नीलम श्रीवास्तव जी (अधीक्षक) से मुलाकात हुई। उन्होंने वृद्धा आश्रम में आने और उन महिलाओं से बात करने का अवसर प्रदान किया। मैं अपने सवालों को लेकर थोड़ा असहज था, क्योंकि जब कोई इतना कष्टकारी जीवन व्यतीत कर रहा हो तो ऐसे में खुशी का सवाल पूछने में छिछक महसूस हो रही थी। भले ही वो सवाल भगवान राम से ही जुड़ा क्यों न हो।
यह वृद्धा महिला आश्रम उत्तर प्रदेश विज्ञान मंच से वित्त पोषित है। 15 अप्रैल 2010 को स्थापित किए गए इस आश्रम में वर्तमान में 40 माताओं का निवास है। ऐसी कोई भी महिला जिसका कोई न हो बस उसके पास उनका आधार कार्ड हो, उनको यहां पर रख लिया जाता है। नीलम जी ने बताया कई बार पुलिस वाले भी आकर छोड़ जाते हैं, ऐसी महिलाओं को जिनका कोई नहीं है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि सुबह की चाय से लेकर शाम के खाने का एक दिन का खर्चा एक वृद्ध मां का 50 रुपये होता है। इसको 150 रुपये पॉकेट मनी दी जाती है जो सीधे इनके खाते में आती है। 50 रुपये साबुन-तेल के लिए, 50 दवा और 50 खुद पर खर्च करने के लिए। चलो ये तो बात हो गई जीवन यापन के हिसाब-किताब की। अब करते हैं भावनाओं की बात, उस भावना की जो इस समय अयोध्या की धमनियों में आम आदमी के माध्यम से दौड़ रही है, 'राम'।
मेरी बात शुरू होती है साखो मां से। थोड़ी सी झिझक के साथ वो कहती हैं, बहू-बेटे ने छोड़ दिया था। 11 साल हो गए यहां आए हुए। बिहार की रहने वाली हूं। भगवान राम की स्थापना से जुड़ा सवाल किया तो आंखों में चमक आई और बोलीं बहुत अच्छा हो रहा है ये तो। कभी सोचा भी नहीं था ऐसा भी होगा। ऐसा लगा मानो उनके चेहरे से सारा दर्द चला गया और उन्हें भगवान राम की याद आ गई। कुछ पल को लगा कि सच में बस यही राम है, जिनके नाम मात्र से ऐसा दर्द भी भुलाया जा सकता है।
मेरी अगली मुलाकात मंगरा देवी मां से हुई। उन्होंने बताया कि वो अयोध्या की हैं। अब साथ देने वाला कोई नहीं बचा तो इन सब के बीच में आ गई। अयोध्या की छलक उनके तिलक से साफ छलक रही थी। एक मुस्कुराता हुआ चेहरा, वो भी इस तरह के जीवन के साथ। भगवान राम बात आते ही वो कहती हैं, हम भी दर्शन करना चाहते हैं।
अगली मुलाकात प्रभा देवी मां से हुई। मैं उनकी तस्वीर लेने की कोशिश कर रहा था तो उनके सहेलियों ने उन्हें मुस्कुराने के साथ अपने ही अंदाज में कुछ कह दिया, जिससे वो थोड़ी नाराज हो गईं। बातचीत में पता चला कि वह प्रतापगढ़ की रहने वाली हैं। जब मैंने उनसे राम के बारे में पूछा तो वहां से उत्तर की जगह प्रश्न मेरे सामने आ गया। सरकार हमें क्यों नहीं बुला रही? मैंने कहां ये तो सरकार से पूंछना पड़ेगा। तो बोलीं पूछो...
फिर मुलाकात हुई राजकुमारी मां से। मालूम चला वो भी बिहार से हैं। उनकी बातों को बहुत ज्यादा विस्तार से देना ठीक नहीं। अगर आपको समझना है तो संतोष आनंद की इन पंक्तियों से आप अंदाजा लगा सकते हैं...'घर फूंक दिया हमने बस राख उठानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है।'
बातचीत के इस दौर के बाद मैंने मैंने अपना आखरी सवाल सभी माताओं से किया। आप लोग इतना कष्टकारी जीवन जी रही हैं, ऐसे में आपको राम से शिकायत नहीं है? उत्तर आता है राम से क्या शिकायत, अब उनको छत मिल रही है। वो बेचारे भी तो टेंट में पड़े थे। हमको अब इस उम्र में क्या चाहिए, बस यही तमन्ना है एक बार दर्शन मिल जाएं।