सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा ने जातिगत समीकरणों को साधने में बीते पांच सालों में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों को बिहार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देकर जातिगत समीकरणों के लिहाज से सधी हुई सियासी पारी को आगे बढ़ाया है...
2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू और भाजपा ने मिलकर बिहार में बाकी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था। लेकिन बीते पांच साल के दौरान सियासत में इतनी उथल-पुथल मची कि नीतीश कुमार अपने ही विरोधी दलों से मिल गए। अब जब एक बार फिर लोकसभा का चुनाव आए हैं, तो बिहार में बड़ी तेजी से सियासत करवट बदलने लगी है। कहा यही जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा के चुनाव में आ सकते हैं। हालांकि सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार की स्थिति 2019 जैसी नहीं है। यही वजह है कि भाजपा इस बार बिहार की सियासत में किसी भी तरीके से दबकर नीतीश कुमार से समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है। सियासी जानकार इसके पीछे भाजपा की पांच साल तक तैयार की गई जातिगत समीकरणों की मजबूती बता रहे हैं।
Bihar Politics: इस बार BJP के साथ चलने में नीतीश के सामने हैं ये पेंच, क्या वाकई कमजोर पड़ गए हैं सुशासन बाबू?
Ashish Tiwariआशीष तिवारी
Updated Thu, 25 Jan 2024 06:41 PM IST
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सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा ने जातिगत समीकरणों को साधने में बीते पांच सालों में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों को बिहार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देकर जातिगत समीकरणों के लिहाज से सधी हुई सियासी पारी को आगे बढ़ाया है...
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Bihar Politics: This time Nitish Kumar is facing these problems in going with BJP
Bihar Politics - फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar
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2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू और भाजपा ने मिलकर बिहार में बाकी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था। लेकिन बीते पांच साल के दौरान सियासत में इतनी उथल-पुथल मची कि नीतीश कुमार अपने ही विरोधी दलों से मिल गए। अब जब एक बार फिर लोकसभा का चुनाव आए हैं, तो बिहार में बड़ी तेजी से सियासत करवट बदलने लगी है। कहा यही जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा के चुनाव में आ सकते हैं। हालांकि सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार की स्थिति 2019 जैसी नहीं है। यही वजह है कि भाजपा इस बार बिहार की सियासत में किसी भी तरीके से दबकर नीतीश कुमार से समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है। सियासी जानकार इसके पीछे भाजपा की पांच साल तक तैयार की गई जातिगत समीकरणों की मजबूती बता रहे हैं।
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जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, देश के अलग-अलग राज्यों की सियासत में तेजी से बदलाव होता दिख रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा इस वक्त बिहार में बदल रही सियासी बयार की हो रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा और जेडीयू एक बार फिर से धीरे-धीरे नजदीक आ रहे हैं। हालांकि इस बार तस्वीर 2019 से थोड़ी बदली हुई दिख रही है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रभात कुमार कहते हैं कि दरअसल भाजपा ने इन पांच सालों में उसी लाइन पर प्रदेश में काम किया जिस पर नीतीश कुमार करते आए हैं। खासतौर से सियासत में जातीयता के समीकरणों पर भाजपा ने इन पांच सालों में मजबूत मेहनत की है। वह कहते हैं कि जिस जातिगत जनगणना के आंकड़ों को नीतीश कुमार अपना मजबूत दांव मान रहे हैं, भाजपा ने दबे पांव इस पर बड़ा खेल कर दिया है।
प्रभात कुमार कहते हैं कि भाजपा ने पांच साल के दौरान सियासी पकड़ को मजबूत करने के लिहाज से जातिगत समीकरणों पर खूब हाथ आजमाए हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर विधानसभा में नेताओं की जातियों का समीकरण भाजपा नेतृत्व ने खूब साधा है। उसी आधार पर आज भाजपा नीतीश कुमार से मोलभाव करने की स्थिति में मजबूती से खड़ी है। प्रभात कहते हैं कि भाजपा भले ही जातिगत जनगणना की खुलेआम वकालत न करती हो, लेकिन बिहार में जब जातीय जनगणना के आंकड़े जारी हुए और उसी आधार पर आरक्षण लागू किया गया, तो भाजपा ने उसका बिल्कुल विरोध नहीं किया। वह कहते हैं इसके अलावा भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के साथ जो माहौल बनाया है, वह भी बिहार की सियासत में फिट बैठ रहा है।
सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा ने जातिगत समीकरणों को साधने में बीते पांच सालों में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों को बिहार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देकर जातिगत समीकरणों के लिहाज से सधी हुई सियासी पारी को आगे बढ़ाया है। राजनीतिक विश्लेषक चंद्रप्रकाश चौधरी कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ मिलकर नीतीश और भाजपा ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था। इसलिए दोनों दल इस बार के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से एक साथ आने की कसरत में लगे हैं। लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि इस बार की स्थिति में जेडीयू और भाजपा में कौन सा दल ज्यादा हावी रहेगा। चौधरी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार बिहार में कमजोर पड़ गए हैं। लेकिन एक सच यह भी है कि भाजपा ने खुद को मजबूत भी किया है।
सियासी जानकारों का मानना है कि बिहार में नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जुड़ने में कई और सियासी घटनाक्रमों को भी जोड़कर देखा जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभात कहते हैं कि इस वक्त भाजपा के साथ नीतीश कुमार के विरोधी दल भी पहले से भाजपा के साथ में हैं। लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ-साथ जीतन राम मांझी भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में नीतीश कुमार को भाजपा के साथ जोड़ने में इन सभी सहयोगियों की सहमति के साथ सामंजस्य को भी बिठाना बेहद जरूरी होगा। वह कहते हैं कि इस बार नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल करने में भाजपा का 'अपर हैंड' है। भाजपा नीतीश कुमार को अपनी शर्तों के साथ ही अपने संगठन में शामिल कराना चाहती है।
सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार फरवरी को होने वाली पूर्णिया की जनसभा के साथ बिहार की सियासत में काफी बड़ी हलचल हो सकती है। इसमें नीतीश कुमार के INDIA गठबंधन से दूर जाने के साथ-साथ NDA में शामिल होने जैसा बड़ा घटनाक्रम हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की बिहार में शुरू होने वाली यात्रा से दूरी भी बना ली है। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी नीतीश कुमार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नीतीश कुमार राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल नहीं हो रहे हैं। जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं कि नीतीश कुमार के पहले से कई कार्यक्रम लगे हुए हैं। फिलहाल अभी तक उनके पास नीतीश कुमार के राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने की कोई सूचना नहीं है।