Khabron Ke Khiladi: बिहार में सत्ता के साझेदारों के चेहरे फिर से बदलने के कयास लग रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने की अटकलें हैं। नीतीश के लिए दरवाजे बंद होने की बात कहने वाली भाजपा उन्हें अपने साथ लेने को तैयार दिख रही है। वहीं, लालू-तेजस्वी भी सत्ता को अपने हाथ से नहीं जाने देने के लिए प्रयास करते दिख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आखिर बिहार की राजनीति में क्या होने जा रहा है? इस बदलाव के पीछे की क्या कहानी है? इसका लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा? नीतीश कुमार की राजनीति का भविष्य क्या है? इन्हीं सवालों पर इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, राहुल महाजन, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार और राखी बख्शी मौजूद रहे।
क्या एक बार फिर से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री होंगे?
विनोद अग्निहोत्री: नीतीश कुमार शोध का विषय हैं। 1977 में चौधरी चरण सिंह ने कर्पूरी ठाकुर की लिस्ट से अलग नाम जोड़कर नीतीश कुमार को टिकट दिया था। लहर के बाद भी नीतीश चुनाव हार गए। बाद में अटल जी के साथ गए। फिर मुख्यमंत्री भी बने। 2013 में उन्होंने अपना रास्ता बदला। नीतीश कुमार 'सेक्युलर' हो गए। अकेले चुनाव लड़ा तो उनके सिर्फ दो सांसद जीतकर आए। इसके बाद वे लालू के साथ गए और बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आए। उसके बाद भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर फिर से भाजपा के साथ चले गए। उसके बाद फिर लालू के साथ गए। अब भाजपा के साथ जाने की अटकलें हैं। भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार ने कभी भी विचारों की राजनीति नहीं की। उन्होंने अपनी सत्ता और अपने पार्टी हित के हिसाब से राजनीति की है।
क्षेत्रीय नेतृत्व के नहीं चाहने पर भी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व क्यों नीतीश को अपने साथ लाना चाहता है?
समीर चौगांवकर: नीतीश कुमार को भाजपा के साथ लाने में सबसे बड़ी भूमिका राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश निभा रहे हैं। 2020 के चुनाव में नीतीश ने आरोप लगाया कि भाजपा दो मॉडल पर काम कर रही थी। पहला चिराग मॉडल और दूसरा आरसीपी मॉडल, जिसकी वजह से उनकी पार्टी को नुकसान हुआ। अब नीतीश वापस भाजपा के साथ आएंगे तो क्या इनके साथ उनके रिश्ते ठीक होंगे। दरअसल उन्हें यह लग रहा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव की सफलता वे भाजपा से अलग रहकर दोहरा नहीं सकते। उनके अपने सांसदों का भी नीतीश पर दबाव था। यह बड़े कारण हैं, जिसकी वजह से वे वापस भाजपा के साथ आ रहे हैं। यह बात तय है कि इस बार भाजपा नीतीश कुमार को पूरी तरह से निचोड़ लेगी।
राहुल महाजन: नीतीश कुमार सर्वाइवर हैं। भारतीय राजनीति में कोई भी दल किसी भी दल के साथ जा सकता है। नीतीश कुमार जब-जब भाजपा के साथ आए हैं, तब-तब दोनों का वोटबैंक बढ़ा है। अपना प्रदर्शन दोहराने के लिए बिहार जैसा प्रदेश भाजपा के लिए बहुत अहम है। अगर राजद, जदयू और वाम दलों का गठबंधन बन जाता है तो भाजपा के लिए प्रदर्शन दोहराना बहुत बड़ी चुनौती होती। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के साथ लोकसभा चुनाव में अपने बहुत से उम्मीदवारों को जिताना चाहते हैं, इसलिए वे भाजपा के साथ जाने का मन बना रहे हैं।
अवधेश कुमार: बिहार में भाजपा का एक भी कार्यकर्ता या नेता नीतीश के साथ नहीं जाना चाहता होगा, लेकिन इस समय स्थिति यह है कि अगर नीतीश महागठबंधन में नहीं रहते हैं तो क्या होगा? पहला यह कि तेजस्वी की सरकार बन जाए। दूसरा- नीतीश भाजपा के साथ आ जाएं और सरकार बन जाए। तीसरा- वे सीधे चुनाव का सामना करें। भाजपा राज्य में अभी लालू के परिवार की सत्ता नहीं चाहती। इसलिए भाजपा नीतीश के साथ जा रही है, लेकिन पार्टी नीतीश की शर्तों पर समझौता नहीं करना चाहती है, इसलिए समय लग रहा है।
अगर नीतीश कुमार नहीं होते तो जिसे INDIA कहा जाने लगा था, क्या वे दल एक साथ बैठते? क्या ममता कांग्रेस साथ बातचीत कर सकती थीं? क्या आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एकसाथ आ सकते थे? लेकिन जब बैठकें शुरू हुईं तो नीतीश का कहीं नाम तक नहीं था। इसके बाद से ही स्थितियां बदलना शुरू हुईं। अयोध्या में जब प्राण प्रतिष्ठा हुई, उस वक्त जिस तरह से बिहार में प्रतिक्रिया हुई, उसके बाद नीतीश को लगने लगा होगा कि भाजपा के साथ जाना ज्यादा बेहतर होगा। कुल मिलाकर नीतीश के रवैये ने यह साफ कर दिया है कि INDIA का अस्तित्व नहीं है।
प्रेम कुमार: पहले यह समझना होगा कि नीतीश ने ऐसा क्या किया कि लालू से दूरियां बढ़ गईं। उसका जबाव यह है कि नीतीश चाहते थे कि लोकसभा चुनाव के साथ राज्य के विधानसभा चुनाव हों। इसके लिए लालू तैयार नहीं थे। नीतीश का प्रस्ताव लालू-तेजस्वी की सियासत को सूट नहीं करता था। इसके बाद नीतीश के सामने सवाल था कि अब क्या किया जाए? नीतीश को साफ दिख रहा था कि उनकी पार्टी हर हाल में टूट रही है। इसकी वजह से उहापोह की स्थिति रही। भाजपा का कोई नेता नीतीश कुमार के हाथों में सत्ता सौंपकर राजनीति नहीं करना चाहता था।
बार-बार पाला बदलने के बाद भी नीतीश कुमार की इतनी अहमियत क्यों है?
राखी बख्शी: कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का एलान एक बहुत बड़ा मास्टर स्ट्रोक था। हमें समझना पड़ेगा कि कब कौन सा दांव कहां लगाना है। पार्टी के तौर भाजपा अपना मास्टर स्ट्रोक आगे रखती है। उसे यह पता है कि नीतीश को साथ लेकर नहीं चले तो बिहार में चुनौती बड़ी होगी। भाजपा लोकसभा चुनाव में नीतीश को साथ लाने का प्रयोग कैसे करेगी, यह देखना होगा।
रामकृपाल सिंह: कई बार हम यह भूल जाते हैं कि राजनीति में विकल्प कम होते हैं, मजबूरी ज्यादा होती है। कई बार अपनी प्रासंगिकता बनाकर रखने के लिए आपको माहौल के हिसाब से चलना पड़ता है। किसने क्या कहा था, यह भूल जाइए। राहुल ने तो अध्यादेश तक फाड़ दिया था। वे चाहते थे कि लालू को तुरंत जेल हो जाए। मार्च-अप्रैल में चुनाव होने जा रहे हैं। मई में नतीजे आ जाएंगे। ऐसे में जो गठबंधन छह-आठ महीने से बन रहा था, जिसकी शुरुआत नीतीश ने की थी, उसी गठबंधन की गाड़ी से अगर नीतीश उतर जाएं और उसकी हवा निकालने लगे तो इससे फायदा भाजपा को नहीं होगा तो किसे होगा।