पथिक ! जो बोया वो पाएगा
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अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर
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बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठने की क्षमता भी नहीं रही। अतः होटल के अपने कमरे में एकांत चिंतन कर रहा हूँ । भविष्य में वृद्धाश्रम में शरण लेने की जब भी इच्छा होती है, तो एक पत्रकार के रुप में निरीक्षण के दौरान यहाँ की स्थिति को देखकर हृदय कंपित हो जाता है। ऐसे निस्सहाय स्त्री- पुरुष किस तरह से मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहाँ जीवन गुजार रहे हैं। हाँ, किसी विशेष अवसर पर समाज सेवक यहाँ अवश्य पहुंच जाते हैं , कुछ फल, मिठाई अथवा वस्त्र आदि लेकर , उद्देश्य उनका अपना फोटो समाचर पत्रों में प्रकाशित करना होता है। मिष्ठान को देख ये वृद्ध किस तरह से टुकुर- टुकुर ताकते है, आपने क्या कभी किसी वृद्धाश्रम में जा कर इसकी अनुभूति की है ? किसी की वेदनाओं को समझने के लिये हमें उसका साक्षात्कार करना होगा। उक्ति है न-
" जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई ।"
कभी-कभी मुझे तो लगता है कि अपने शहर के संकटमोचन मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक की पंक्ति में सम्मिलित हो जाना, इस तरह के वृद्धाश्रम से बेहतर होगा । कम से कम उन्हें सुबह से ही चाय ,समोसा ,ब्रेड और भी कुछ ना कुछ भक्तगण देते ही रहते हैं। ठंड में कंबल इन्हें इतना पर्याप्त मिलता है कि वह उसे बेच भी देते हैं।
बात मान,सम्मान एवं स्वाभिमान की रही , तो वह इन वृद्धों के लिये दोनों ही स्थान पर नहीं है।
वृद्धाश्रम में वे बंधक जैसे अवश्य है।
एक छोटा सा उदहारण देकर अपने कथन को स्पष्ट कर रहा हूँ। हमारे उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने यह तुगलकी आदेश जारी कर रखा है कि छुट्टे गोवंश सड़कों पर घूमने न पाए । इन्हें पशु आश्रय स्थल में रखा जाए । आनन-फानन में पशु आश्रय स्थल जो कि अर्ध निर्मित थें, वहां गोवंश को लाकर बांध दिया गया । जरा सोचिए जो नंदी महाराज सड़कों पर घूम कर मस्ती के साथ जो मिला वह ग्रहण कर लेते थें। उन्हें पशु आश्रय स्थल पर पहले पुआल फिर सूखा भूसा मिला। पेयजल एवं साफ सफाई की व्यवस्था उत्तम नहीं रही। एक गोवंश पर खर्च मात्र ₹30 दिए जा रहे हैं। सो, स्थिति यह हुई कि गोवंश मरने लगे और विभाग रिकॉर्ड में हेराफेरी कर उन्हें जीवित बताते रहा, परंतु इन इन पशुओं की आंखों से बहाने वाली अश्रुधारा ऐसे सरकारी गौशालाओं की दास्तान खुद-ब-खुद बयां करती मिली।
वृद्धाश्रम की भी कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति है।
कुछ वर्ष पूर्व विंध्याचल धाम में एक बड़े समाज सेवक का आगमन हुआ । उनका निजी प्रस्तावित वृद्ध आश्रम चर्चा में रहा । देवी धाम में उन्होंने वचन दिया कि वे आजीवन 51 निर्धन वृद्ध-विधवाओं को प्रति माह 5 किलो ग्राम चावल देंगे। वे इनके "अभिभावक " जैसे हैं । चयनित बूढ़ी महिलाएँ दूर-दूर से समय से वहाँ पहुँचने लगीं, परंतु भौतिक युग में निजी स्वार्थ के समक्ष वचन का कोई मोल नहीं होता । स्वेच्छा से एवं निज स्वार्थ के लिए लोग मासूम एवं असहाय लोगों से जुड़ते हैं और जब स्वार्थ सिद्ध हो जाता है, तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह उन्हें निकाल फेंकते हैं।
फिर यदि अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर और बल देता हूँ, तो घुंघट का पट खुलता है ,संत कबीर यह वाणी " मुझसे बुरा न कोय" प्रतिध्वनिसुनाई पड़ती है।
हमारी दुर्दशा का कोई न कोई तो कारण होता है। अत्मचिंतन किया,तो आवाज आई - तुमने अपना घर क्यों छोड़ा। अभिभावकों ने कठिन परिश्रम कर विद्यालय का निर्माण किया, अपनों का क्षणिक आक्रोश भी न सह सका और दूसरों के झूठे वायदे पर विश्वास कर उन्हें अभिभावक समझ बैठा। अब जब भ्रमजाल टूटा तो विकल क्यों हैं।"
अतः पिछले ढ़ाई वर्षों में सबसे गंभीर स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित होकर भी मैंने इस बार धैर्य एवं विवेक नहीं खोया है। भविष्य में नहीं जाना मुझे वृद्धाश्रम । जबतक जान है जहान है । अभी भी अनेक ऐसे वृद्ध मिलेंगे, जिनकी सांसें फूल रही हैं, फिर भी आत्मविश्वास के साथ रिक्शा चला रहे हैं।
यद्यपि मानवधर्म तो यही है कि निराश्रितों का सहयोग न कर , तो वृद्धाश्रम को मिलने वाली सरकारी धनराशि को न हड़पे।
अरे हाँ ! याद आया वृद्धदिवस पर मैं अपनी दादी को किस तरह से भूल सकता हूँ। जिन्होंने अपने वृद्धा पेंशन का सारा पैसा मेरी सुख-सुविधा पर खर्च किया । मेरी शिक्षा पूर्ण करने के लिए मुझे लेकर कंपनी गार्डन में लेकर गयी।मेरे लिए अतिरिक्त भोजन की व्यवस्था उन्होंने की। यद्यपि , उनकी मृत्यु के समय मैं उत्तर प्रदेश से बाहर था । मुझे जानकारी नहीं हुई । वापस लौटने पर मित्र ने बताया कि अंतिम समय उनकी आंखें तुम्हें ही खोज रही थी। यह प्रायश्चितभी तो मुझे करना ही है न ?
तथापि मैंने कुछ पुण्यकर्म भी किये हैं,जो नियति के समक्ष मुझे नतमस्तक नहीं होने दे रहा है। मुझे रहने के लिये इस होटल में निःशुल्क कमरा मिला है, साथ ही इसके स्वामी स्वयं मेरी इस अवस्था में हर प्रकार से मेरा सहयोग कर रहे हैं।
मेरे मित्र अखिलेश मिश्र भी कमरे पर आ स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहे।
इन्हीं शब्दों के साथ व्याकुल पथिक का सभी को प्रणाम।
( जीवन की पाठशाला से )