*हमारा देश भारत आदिकाल से "वसुधैव कुटुम्बकम्" को आधार मानकर "विश्व बन्धुत्व" की भावना का पोषक रहा है | मानव जीवन में भाव एवं भावना का विशेष महत्त्व होता है | मनुष्य में भावों का जन्म उसके पालन - पोषण (परिवेश) एवं शिक्षा के आधार पर होता है | भारतीय शिक्षा पद्धति इतनी दिव्य रही है कि इसी शिक्षा एवं ज्ञान को प्राप्त करके हमारे महापुरुषों ने भारतीय ज्ञान को समस्त विश्व में प्रसारित किया था | हमारे ऋषि - महर्षियों ने बौद्धिक क्षमता के साथ - साथ आत्मिक विकास करने एवं कराने का प्रयास किया था और यह आत्मिक विकास आध्यात्मिक शिक्षा के बिना सम्भव नहीं है | समस्त विश्व में हमारा देश आध्यात्म का केन्द्र रहा है | आध्यात्मिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण इसलिए थी क्योंकि इस शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थी को योग एवं भविष्य निर्माण की अद्भुत कला तो सिखाई ही जाती थी साथ ही उनके हृदय में सेवाभाव , दया , करूणा आदि का भी भाव प्रकट किया जाता था | यह शिक्षा प्राचीन शिक्षा पद्धति अर्थात आश्रम पद्धति के माध्यम से प्राप्त होती थी | सामाजिक समरसता एवं आपसी प्रेम , सामंजस्य एवं एक दूसरे के सम्मान करने की भावना इन आश्रम पद्धति विद्यालयों से विकसित होती थी | इसी शिक्षा पद्धति अर्थात आध्यात्मिक शिक्षा के बल पर समस्त विश्व में भारत एक प्रमुख स्थान पाता था और उसे विश्व गुरु कहा जाता था | भौतिक शिक्षा हमको संसार के विषय में ज्ञान प्रदान कर सकती हैं परंतु आध्यात्मिक शिक्षा मनुष्य को स्वयं के विषय में ज्ञानी बनाती है , जब तक मनुष्य को स्वयं का ज्ञान नहीं होता है तब तक उसके हृदय में किसी भी प्रकार का भाव नहीं प्रकट हो पाता है इसलिए प्रत्येक मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि वह भौतिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी प्राप्त करें |*
*आज की स्थिति यह है कि मात्र हमारे देश भारत में ही नहीं बल्कि समस्त विश्व की एक विकट समस्या यह बन गई है कि जो शिक्षा आज हमारे आने वाली पीढ़ियों को दी जा रही है वह मात्र भौतिक एवं बौद्धिक बनकर रह गई है | आज की शिक्षा में आध्यात्मिक शिक्षा का किंचित भी समावेश नहीं दिखाई पड़ रहा है | आज हमको इतिहास तो पढ़ाया जा रहा है परंतु भविष्य निर्माण के लिए कोई भी शिक्षा नहीं प्राप्त हो रही है | आज यदि समस्त विश्व में एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के लिए घातक हो रहा है तो उसका कारण एक ही है कि मनुष्य को आध्यात्मिक शिक्षा नहीं प्राप्त हो पाई और जब तक मनुष्य आध्यात्मिकता को नहीं ग्रहण करेगा तब तक उसके हृदय में सेवा का भाव एवं मानव समाज के कल्याण का भाव नहीं उत्पन्न हो सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज हमारा देश भारत शिक्षा के विषय में तो बहुत आगे निकल चुका है परंतु यह आज की शिक्षा का ही प्रभाव है कि मनुष्य के पास संवेदना नहीं है , एक दूसरे के भाव को समझने की क्षमता और परहित की भावना समाप्त होती जा रही है | आज शिक्षा का आधार पुस्तकीय ज्ञान रह गया है और यह सत्य है की पुस्तकीय ज्ञान के बल पर कभी भी इन भावों का प्राकट्य नहीं हो सकता है | मनुष्य को मनुष्य बनाने में आध्यात्मिक शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है परंतु आज आध्यात्मिक शिक्षा के अभाव के कारण ही मनुष्य समाज में पशुवत् व्यवहार कर रहा है | आज जो स्थिति बन रही है यह आने वाले भविष्य के लिए बहुत ही दुखदायी सिद्ध होने वाली है |*
*जिस प्रकार वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रयोग करके एक नया आविष्कार करते हैं उसी प्रकार शरीर रूपी प्रयोगशाला में आध्यात्मिक आविष्कार करना ही होगा अन्यथा भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं दिखाई पड़ रहा है |*