*आदिकाल से ही मानव समाज में समाज को दिशा दिखाने के लिए मुखिया का चयन होता रहा है | किसी भी समाज या परिवार को मुखिया के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है | जिस प्रकार हमारे देश में पूर्वकाल में राजाओं का शासन हुआ करता था वही राजा पूरे देश का मुखिया कहा जाता था और अपने परिवार को , अपने राष्ट्र को निरंतर प्रगतिशील एवं विकासोन्मुखी करने के साथ-साथ समय-समय पर अनैतिक एवं अनर्गल कृत्य करने पर संबंधित सदस्य को दंडित करना उस मुखिया का या राजा का प्रथम एवं प्रमुख कर्तव्य होता था | मुखिया कैसा होना चाहिए इसकी व्याख्या करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मानस में लिखते हैं :-- "मुखिया मुख सो चाहिए खानपान कहुँ एक ! पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक !!" अर्थात :- मुखिया को किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करना चाहिए , जिस प्रकार मुख के द्वारा खाद्य सामग्री ग्रहण की जाती है और वह खाद्य सामग्री शरीर के सभी अंगों पर समान रूप से प्रभाव डालती है उसी प्रकार मुखिया को भी अपने परिवार के सभी सदस्यों को समान रूप से पोषित करना चाहिए | इतिहास साक्षी है कि जिस राष्ट्र समाज या परिवार का मुखिया अपने परिवार की ओर से अपना ध्यान हटा लेता है उस परिवार में अनर्गल कृत्य होने लगते हैं , क्योंकि उस परिवार के सदस्यों को किसी भी तरह का कोई भय नहीं रह जाता है | इसलिए मुखिया को सदैव सजग एवं सचेत रहना चाहिए | मुखिया अपने परिवार को तभी दिशा दिखा सकता है जब वह स्वयं उचित आचरण करें क्योंकि जब मुखिया ही पथभ्रष्ट हो जाता है तो वह दूसरों को शिक्षा देने का ना तो अधिकारी रह जाता है और ना ही शिक्षा दे पाता है क्योंकि तब उसकी दी हुई शिक्षा प्रभावशाली नहीं होती है | इसलिए मुखिया को सर्वप्रथम अपने परिवार के सदस्यों से कुछ भी पालन करवाने से पहले स्वयं पालन करना आवश्यक होता है | जिस परिवार एवं राष्ट्र में मुखिया स्वयं नियमों का पालन न करके अपने परिवार से उन नियमों का पालन करवाना चाहता है वह परिवार बिखर जाता है |*
*आज समस्त विश्व की जो परिस्थित है उसमें यही देखने को मिल रहा है कि देश के शासक अपने देशवासियों के लिए तो अनेक नियम कानून बनाते हैं परंतु स्वयं उन्हीं के द्वारा नियम तोड़ा जा रहा है शायद इसीलिए आज लोगों के मन में शासन प्रशासन का भाई खत्म होता चला जा रहा है | समाज में अनेकों छोटे बड़े संगठन एवं समूह काम कर रहे हैं जो समाज को आगे ले जाने का दम तो भरते हैं परंतु उनकी वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत होती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में ऐसे अनेक संगठनों को देख रहा हूं जहां के मुखिया संगठन के सदस्यों के लिए तो अनेकों नियम बना देते हैं परंतु स्वयं उन नियमों का पालन नहीं कर पाते और यह अकाट्य सत्य है कि जब मुखिया के द्वारा स्वयं नियम का पालन नहीं किया जाता है तो वह परिवार के सदस्यों से भी उन नियमों का पालन करवाने में असमर्थ दिखाई पड़ता है | इसलिए किसी को भी कुछ बताने के पहले उसे स्वयं अपने आचरण में उतारना चाहिए अन्यथा मनुष्य हास्य का पात्र बन जाता है | किसी भी संगठन एवं परिवार का मुखिया उस संगठन का मार्गदर्शक होता है परंतु जब मार्गदर्शक स्वयं अपने संगठन के प्रति उदासीन हो जाता है तो वह संगठन के सदस्यों से दूर तो होता ही चला जाता है साथ ही ही वह संगठन भी तितर-बितर होने लगता है | किसी भी और राष्ट्र समाज एवं संगठन को संगठित रखने के लिए उस संगठन के मुखिया का सजग होना तो आवश्यक है ही साथ ही स्वयं संगठन के नियमों को पालन करने का प्रयास करना परम आवश्यक है अन्यथा वह समाज या संगठन विकास नहीं कर सकता है | आज दूसरों को उपदेश देने वाले अधिक दिखाई पड़ रहे हैं और उसका पालन करने वालों की संख्या बहुत कम है जो कि राष्ट्र एवं समाज के लिए चिंताजनक विषय है |*
*मुखिया तभी सफल हो सकता है जब वह तुलसीदास जी के द्वारा बताए गए मुख की उपाधि धारण करने की क्षमता रखता हो अन्यथा कोई भी हो वह कभी भी सफल नहीं हो सकता |*