
*आदिकाल से इस धरती पर जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य के हृदय में एक बार भगवान का सानिध्य प्राप्त करने का विचार अवश्य उत्पन्न होता है | मनुष्य के हृदय यह विचार जीवन के किसी भी पड़ाव पर उत्पन्न हो सकता है | जब यह विचार मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होता है तो वह ईश्वर प्राप्ति के साधनों पर विचार करने लगता है | मनुष्य अनेक संत - महात्माओं , विचारकों एवं सद्गुरुओं की शरण में जाकर ईश्वर प्राप्ति के उपाय पूछता है | प्राय: अध्यात्मपथ के पथिक इसी असमंजस में देखे जाते हैं कि आखिर कौन सी पूजा , व्रत या उपाय कर लूँ जिससे कि ईश्वर की प्राप्ति हो जाय ?? जब हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है तभी मनुष्य ईश्वर के प्रति उन्मुख होता है |
किस तरह होती है ईश्वर की प्राप्ति ?
पूजा - पाठ , अर्चन , वन्दन , व्रत - उपवास आदि करके ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करता है | परंतु इतना सब करने के बाद भी जब उस परमात्मा की कृपा नहीं प्राप्त होती है तो मनुष्य हताश एवं निराश होकर यह कहने लगता है कि :- यह सब व्यर्थ है ! तब मनुष्य ईश्वर से विमुख होकर नास्तिकता की ओर बढ़ जाता है | जबकि मनुष्य को यह विचार करना चाहिए कि यदि ईश्वर की कृपा नहीं हो रही है तो उसका कारण क्या है ? हमारे महर्षियों का कहना है कि ईश्वर प्राप्ति का उपाय करने के पहले मनुष्य को यह विचार अवश्य करना चाहिए कि उसका जीवन , चिंतन , चरित्र एवं व्यवहार कैसा है | क्योंकि ईश्वर की कृपा उसी को प्राप्त होती है जिसका हृदय निर्मल एवं आचरण शुद्ध एवं सात्त्विक हो |*
*आज समाज में ईश्वर की मान्यताओं एवं उनके द्वारा स्थापित आदर्शों की अनदेखी करके मनुष्य ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का अनेक उपाय करता हुआ दीखता है | बड़े - बड़े अनुष्ठान का आयोजन , व्रत - उपवास तो मनुष्य के द्वारा अनवरत् किये जा रहे हैं परंतु उनके जीवन में दुखों का पहाड़ भी देखा जा रहा है | इतनी ईशोपासना करने के बाद भी मनुष्य के दुख के कारणों पर जब मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूँ तो यही परिणाम निकलता है कि :- आज मनुष्य धर्म तो प्रभु श्री राम की तरह करने का दिखावा करता है परन्तु उसके कर्म रावण की तरह होते हैं | इस संसार में कर्म की ही प्रधानता रही है | आज मनुष्य अन्याय , झूठ , कपट एवं बुरे आचरणों के जाल से स्वयं को बाहर नहीं निकाल पा रहा है और उपाय करता है ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का | ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम हृदय में ईश्वर के गुण सत्य , प्रेम , करुणा , न्याय एवं पवित्रता के साथ सदाचरण को स्थान देते हुए इस हृदय से छल , कपट , छिद्रान्वेषण , झूठ , अहंकार आदि दुर्गुणों को निकालना पड़ेगा | आज का मनुष्य यही नहीं कर पा रहा है और दोष देता है ईश्वर को कि इतना विधान करने के बाद भी भगवत्कृपा नहीं प्राप्त हुई | प्रत्येक मनुष्य मानस में लिखी चौपाई का सदैव स्मरण करना चाहिए जहाँ स्वयं राघवेन्द्र सरकार घोषणा करते हैं कि :- "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !! अर्थात भगवत्कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य को दुराचरण से दूर रहते हुए अपने हृदय को निर्मल बनाना चाहिए | जिस दिन यह हृदय निर्मल हो जायेगा और हृदय से माया हट जायेगी उस दिन बिना कोई साधन किये ही हृदय में ईश्वर प्रकट हो जायेगा |*
*आज भी ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है परंतु मनुष्य दिन रात झूठ चोरी बेईमानी कपट आदि कुकृत्यों में लिप्त रहकर यदि ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने का उद्योग करता है तो यह कभी सम्भव नहीं हो सकता |*