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चिपको आंदोलन

17 जून 2023

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बर्ष 1972 ई में पहाड़ी जिलों के जंगलों में से जब पेड़ काटने शुरू हुए। पेड़ों की नजायज कटाई की जा रही थी। गांव वासियों को जंगलों की कटाई से बहुत दुखी हुए। वह पेड़ों से अपनी बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते हैं।

जंगलों की नजायज कटाई  को रोकने के लिए रैनी गांव की वासी  गौरा देवी और उसके साथ 27 औरतें पेड़ों से लिपट गई। उन्होंने सरकार द्वारा नियुक्त किए गए ठेकेदारों का डटकर विरोध किया। ठेकेदारों ने उन्हें पेड़ों से हटने के लिए कहा लेकिन वह पेड़ों से दूर नहीं हटी । ठेकेदारों ने उन्हें बंदुक से डराने की कोशिश की लेकिन वह पेड़ों पर ही लिपटी रही। गौरा देवी की अगुवाई में आंदोलन शुरू किया गया।  इस आंदोलन में  रैनी गांव के वासियों ने उनका साथ दिया। यह आंदोलन काफी तेज था इस आंदोलन को रोकने के लिए उन पर बंदुकें भी तानी गई लेकिन उन्होंने इस की कोई परवाह ना करते हुए इस आंदोलन को जारी रखा। कुछ पेड़ों के आगे जाकर खड़े हो गए। कुछ पेड़ों से लिपट गए। जिसके कारण पेड़ काटने वाले आगे नहीं बढ़ पाए। यह खबर अखबारों में भी छप गई। यह खबर आग की तरह फैल गई। इस ख़बर को पड़ कर आस -पास के गांव वालों ने भी इस आंदोलन में उनका समर्थन किया। आस- पास के गांव वालों ने भी पेड़ों को बचाने के लिए ऐसा ही किया। पेड़ों को बचाने के लिए गौरा देवी और उसके साथ 27 औरतें लिपट गई थी।  इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया। यह आंदोलन अहिंसा पर आधारित था। चिपको आंदोलन 26 मार्च 1947 में शुरू हुआ था। ।इस घटना को बीते हुए 50 वर्ष हो गए हैं। लेकिन आज भी इस घटना को चिपको आंदोलन के नाम से याद किया जाता है। चिपको आंदोलन को प्रेरणा सोर माना जाता है।




प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत शानदार लिखा बहन 😊🏆🏆

17 जून 2023

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रचनाएँ
मानव द्वारा प्रक्रिति का विनाश
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मानव जीवन में जंगल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जंगल मानव की बहुत सी जरुरतों को पूरा करते हैं। जंगल बहुत सी लकड़ियां प्रदान करते हैं। जो हमारे अलग -अलग कामों के लिए उपयोग की जाती है। जैसे कि भोजन पकाने के लिए, फर्नीचर बनाने के लिए , कुर्सी टेबल बनाने के लिए और कागज बनाने के लिए और इसके सिवाय और भी अन्य उद्योगों के लिए उपयोग की जाती है। जंगल बरखा लाने में सहायक होते हैं। जिससे हवा का तापमान ठंडा रहता है। जंगल हमारे वातावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने में मददगार साबित होते हैं।जंगल बहुत बड़ी मात्रा में हवा में मोजूद कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और हवा में आक्सीजन छोड़ते हैं। जो मानव और जानवरों को जीवित रखने में सहायक होती है। इसके बिना मानव और जानवरों का जीवन असंभव है।लेकिन यह सब जानते हुए भी मानव जंगलों की अंधाधुंध कटाई करता जा रहा है। तेजी से कम हो रहे जंगलों ने देश के जंगली जीवन पर बहुत बुरा असर पाया है। कई जंगली जीवों की प्रजातियों की गिनती बहुत कम हो गई है। कई प्रजातियां तो आलोप हो चुकी है।यह बहुत ही गंभीर समस्या है। जो कुदरती वातावरण के संतुलन के लिए बहुत बुरा है। यह सिर्फ मानव के द्वारा लगातार पेड़ काटने की वजह से ही हुआ है। मानव के द्वारा कुदरत में बहुत ज्यादा दखलअंदाजी दी जाती है।अगर मानव अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ काटता है तो उसे उसके बदले और पेड़ लगाने चाहिए। कुदरती वनस्पति मानव के लिए किसी अर्थ व्यवस्था के लिए वरदान साबित होते हैं। वनस्पति रकबा बढ़ाने और कुदरती वनस्पति को बचाने की सख्त ज़रूरत है। अधिक से अधिक पेड़ लगाने की और उनकी देखभाल करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए। जंगल की खेती या फिर समाजिक जंगलात उत्पादन को अपनाना चाहिए। नदियों, नहरों, दरियावों सड़कों और रेल मार्गों के पास खाली जमीन पर दरख़्त लगाने चाहिए। अधिक से अधिक पेड़ लगाकर ही हम अपनी लकड़ी की जरूरतों को पूरा कर सकते है और अपने वातावरण को साफ सुथरा और शुद्ध रख सकते हैं।
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