देश पराया वेश पराया
देश पराया वेश पराया
देश पराया वेश पराया
आज फिर मन भर आया
याद आई उस छोटे से शहर की
भाई-बहन और शाम के पहर की
माता-पिता और प्यारी नानी
कभी सुनाते थे कहानी
कभी लड़ते भईया हमसे
कभी हम भईया से लड़ते
लड़ते - लड़ते फिर अचानक
किसी बात पर मिलकर हंसते
अब ना भईया और न बहना
अकेले सब ने ये दुख सहना
बहन चली गई ससुराल
सपनों की जलाए मशाल
और भईया नौकरी पे
भाभी को ले अपने साथ
माँ अकेली तन्हा लाचार
पिताजी को करती याद
जीवन काट रही है ऐसे
घर मे ही काटे वनवास जैसे
मै भी बैठी अपने समुराल
कॉल पे ही पूछूँ हाल
कविता चौधरी