पाप रहा फलता जब-जब
आसमां के रौद्र से,
अश्रु धारा बही जब-जब
प्रकट होकर तब-तब तुझको
मानव जीवन बचाना होगा
सतयुग की स्थापना को फिर से दोहराना होगा
पीडित नेत्रों से जब-जब
टीस भरे हृदय से जब जब
चीख पुकार उठने लगे
हा-हा कार मचने लगे
प्रकट होकर तब तब तुझको
रथ कोई चलाना होगा
सतयुग की स्थापना को फिर से दोहराना होगा
रौंदी जाए स्त्री जब-जब
दाव लगाया जाए जब-जब
मानव दानव बन जाए जब-जब
कोई विकल्प रहे ना तब-तब
प्रकट होकर तब-तब तुझको
सुदर्शन को उठाना होगा
सतयुग की स्थापना को फिर से दोहराना होगा
कविता गुज्जर