दिल के अरमानों को आज कागज़ पर उतार दे।
टूटे हुये सपने को , फिर से तू सवार दे।
बिखरी जो तकदीर के हाथो, उन तमन्नाओं को आज।
अपने हाथों से समेट, फिर से नया निखार दे।
वही सपने वही अरमान दिल में फिर उठने लगे।
एक तमन्ना में सिमट कर, आज फिर कहने लगे।
छूले जाकर आसमां को, जिसको छूना चाह रहा है।
आज फिर तेरा आकाश, इशारा दिए बुला रहा है।
काल(समय)स्वयं पुकार रहा, संपनों को आकार तू दे दे।
दिल मे मचलती लहरों को, चन्द्रमा का प्रकाश तू दे दे।
सूर्य की गर्मी के तपकर, स्वर्ण सी आभा तू ले ले।
बनके पारस की तरह तू, लोहे को तू सोना कर दे।
भूलेगा जो आज खुद को, कल शिखर पर जा मिलेगा।
तेरे दृढ़ संकल्प के आगे, फिर वो खुदा भी हिलेगा।
निकाल कर आँधी से कश्ती जब चलेगा तू अकेले।
पहुंचेगा मंजिल पे तू, सपनों का संसार मिलेगा।
कविता चौधरी