रोटी के पीछे हरदम भाग रहा इन्सान
जीने की खातिर जीना भूल गया इन्सान।
गावँ छोड़ा, अपने छोड़े, छोड़ दिया घर बाहर
धूप-छाँव, सर्दी-गर्मी, आँधी हो या बरसात
रवि से पहले उठकर दौड़े शशि चमके घर आये।
रात को बच्चे सोये मिले उठने से पहले चला जाये
जिस रोटी को लाने मे बीत गया दिन सारा
उस रोटी का मुह मे गया ना एक निवाला ।
कोई बेईमानी से अर्जित कर लाये घर पे रोटी
कोई ईमान से ना हटे चाहे भूख से आँते रोती
भाग दौड़ की जिन्दगी से टूटा है हर ख्वाब
इस रोटी की खातिर क्या-क्या कर गया इन्सान।
कविता चौधरी