दिल बिक रहे है लोग बिक रहे है
दौलत की दलदल मे सब फँस रहे है।
कहीं आंतकवादियों की भीड़ लगी है
कहीं नेताओं की नेतागिरि है
एक सामने से तलवार चलाता
दूसरा कुर्सी का लाभ उठाता।
लोग ऐसे बिक रहे है
जैसे चौराहे पर अखबार
तमाशा वो देख रहा है
हो अचम्भित और हैरान।
रावण के लिए आये राम
कंस के लिये आये शाम
मगर कलयुग के राक्षसों से
अब तो भगवान डर रहे।
दिल बिक रहे है लोग बिक रहे है
दौलत की दलदल मे सब फँस रहे है।
कविता चौधरी