इन्सान तेरी क्या है बस्ती
जिन्दगी के रंगमंच पर
कठपुतली बन नाच रहा है
किसमे कितना अभिनय
वो ऊपर बैठा जांच रहा है
मोह के धागे मे बँधकर
रंग बिरंगे कपड़ो मे सजकर
जो तुझे नचा रहा है
जो तुझे भगा रहा है
क्यों उससे अनजान है
क्यों इतना परेशान है
किसको पता कब पर्दा गिर जाए
किसको पता कब कोई बिछड़ जाए
किस पर इतना इतरा रहा है
किसको अपना बता रहा है
कोई साथ नही जायेगा
सब यहीं रह जायेगा
इन्सान तेरी क्या है हस्ती
इन्सान तेरी क्या है बस्ती
कविता गुज्जर