त्राहि माम त्राहि माम
धरती कर रही पुकार
त्राहि माम त्राहि माम
सुनो मेरी व्यथा प्रभू
सुनकर कुछ तो करो प्रभू
धरती पर है बोझ बढ़ा
मुझसे अब ना जाए साहा
मानव ही मानव हर जगह है
एक के उपर एक खड़ा है
जनसंख्या मे हुआ विस्फोट
कैसे सँहू मै इतना बोझ
उससे बढ़ा है पापों का बोझ
मानवता मे बढ़ा है लोभ
स्वार्थ भाव से भरा है मानव
कर्मो से भी बना है दानव
अब प्रलय ला दो प्रभू
कर जोड़ मै विनती करुँ
बहुत बढ़ गया मुझपे बोझ
अब साहा ना जाता रोज
कविता चौधरी