मै अन्धेरो मे उजाला ढूंढ़ती हूँ
तुफाँ मे सहारा ढूंढती हूँ ।
भटक रही जो मझधार मे
उस कश्ती का किनारा ढूंढ़ती है।
उजड़ी हुई बस्ती मे
कोई इमारत महफूज ढूँढती हूँ
मैं टूटती हुई दीवारों मे
कोई दीवार मजबूत ढूँढती हूँ
बचा सके जो रिश्ते को
ऐसा कोई फसाना ढूंढती हूँ
मै बात करने का उससे
कोई बहाना ढूँढ्ती हूँ
ढूँढता होगा वो भी मुझे
बस यही ख्वाब बुनती हूँ
उसी के इन्तज़ार मे
मै उसी का रास्ता चुनती हूँ
कविता चौधरी