टूटते हुये रिश्तों को आओ समेट लेते है
छूटते हुये धागों को कस के पकड़ लेते है
दुनिया की भीड मे जो खो रहे है
आओ उन किस्सों को फिर से घेर लेते है
रिश्तों की अहमियत का तब चलेगा
जब हम से कोई एक ना रहेगा
क्यों ना जीते जी हम हर रिश्ते को
गले लगा बिखरने से बचा लेते है।
माना के कुछ गल्तियां हुई हम सब से
आओ उन गल्तियों से जीने का सबक लेते है
भूल कर हर शिकवा और खता हम सबकी
आओ हर रिश्ते की अच्छाईयों पर गौर करते है
बाद के पछताने से अच्छा अभी हम
क्यों ना थोड़ा सा झुककर मिल लेते है
इन टूटते छूटते हुये रिश्तों को
आओ हम प्यार से पोषित करते है
कविता चौधरी