बसंत ऋतु आयो रे
कोयलिया गीत गायो रे
प्रकृति का रोम-रोम खिला
विरहन को जैसे प्रियतम मिला
विदा हो गयी बेदर्दी शीत
किशोरी झूम गाये रे गीत
फूलों की फूटी कपोलें
भवरेँ बनकर आये रे मीत
खेतों मे सरसों लहराए
पीले पीले फूल खिलाए
कृषक खेत देख हर्षाये
फसल पकी ठुमक लहराए
अम्बुआ से महक उठी
मन्जिरियाँ भी चहक उठी
पक्षियों के झुर्मट आये
हर तरफ खुशहाली छाये
कविता चौधरी