धर्म, धर्म ना रहा अब तो
पाप कर्म का अड्डा है
गुंडों से लड़ते हैं सारे
लोग यहां जो इकट्ठा है
मुहँ मे राम बगल मे छुरा
सिद्ध यहाँ पे होता है
आता है जो आज यहाँ
कल वही तो रोता है
कोई गुरु जी बन बैठा है
कोई बना हुआ महाराज
कोई पूजे ऐसे उनको
जैसे हो इनके भगवान
अपना अपना धर्म है अब तो
अपने अपने है भगवान
भूल गया है मानव अब तो
मानवता का हर संस्कार
नानक, राम की धरती को यूँ
क्यूँ करते हो बदनाम
आडम्बर का काम छोड़ दो
बन जाओ अब तो इन्सान
कविता चौधरी