हे, कन्हैया आज फिर तुम आ जाओ
निर्वस्त्र हो रही धरती की लाज बचा लो
इस युग के अधर्मी मानवों के हाथों
धरती को वृक्ष हरण से तुम बचालो
ये अधर्मी मानव कर रहा है बार-बार
आज धरा के वस्त्रों को तार-तार
आज तुम इनको पाठ पढ़ा दो।
इनको वृक्षा का रोपण सिखा दो।
चुनर धानी औढ़ कर नाचे
ये धरा दिल खोल के नाचे
इसकी गोद मे फले और फूले
जड़ी-बूटियाँ और फूल निराले
हर एक का कर्म बन जाये
एक-एक सभी वृक्ष लगाएं
हर तरफ हरियाली हो
वृक्षारोपण ही धर्म बन जाये
जितने ज्यादा वृक्ष लगेंगे
आक्सीजन भरपूर मिलेगी
आक्सीजन की कमी को
वृक्ष ही तो दूर करेंगें ।
कविता चौधरी