शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि हाथों में कलश लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस तिथि पर धनतेरस मनाया जाता है। इस वर्ष 10 नवंबर को धनतेरस है। धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा उपासना करने से साधक के आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
धनतेरस पर करें इन चमत्कारी मंत्रों का जाप और आरती, धन से भर जाएगी खाली तिजोरी।
हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि हाथों में कलश लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस तिथि पर धनतेरस मनाया जाता है। इस वर्ष 10 नवंबर को धनतेरस है। धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा उपासना करने से साधक के आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही धन संबंधी परेशानी हमेशा के लिए दूर हो जाती है। अगर आप भी भगवान धन्वन्तरि की कृपा पाना चाहते हैं, तो धनतेरस के दिन पूजा के समय इन मंत्रों का जाप और आरती अवश्य करें।
श्री धन्वंतरि मंत्र
1. ॐ धन्वंतराये नमः
2. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
3. “ॐ धन्वंतरये नमः”॥
4. ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय
विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम:||
विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम:||
5. “ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।”
6. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
7. तारकमन्त्रम् ।
ओं धं धन्वन्तरये नमः ।
8. ॐ नमो भगवते धनवंतराय
अमृताकर्षणाय धन्वन्तराय
वेधासे सुराराधिताय धन्वंतराय
सर्व सिद्धि प्रदेय धन्वंतराय
सर्व रक्षा कारिणेय धन्वंतराय
सर्व रोग निवारिणी धन्वंतराय
सर्व देवानां हिताय धन्वंतराय
सर्व मनुष्यानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व भूतानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व लोकानाम हिताय धन्वन्तराय
सर्व सिद्धि मंत्र स्वरूपिणी
धन्वन्तराय नमः
श्री धन्वंतरि जी की आरती
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।