मानव जब राह भटक जाता , -नैतिक मूल्यों से हट जाता , - तब मानवता अपने पावन आदर्श बता उससेकहती -
“भोजपुरी गीत”कइसे जईबू गोरीछलकत गगरिया, डगरिया में शोर हो गइलकहीं बैठल होइहेंछुपि के साँवरिया, नजरिया में चोर हो गइल...... बरसी गजरा तुहार, भीगी अँचरा लिलार मति कर मन शृंगार, रार कजरा के धारपायल खनकी तेहोइहें गुलजार गोरिया मनन कर घर बार, जनि कर तूँ विहार,कइसे विसरी धनापलखत पहरिया, शहरिया अंजोर हो गइ
आज 14 अगस्त है,स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व सन्ध्या... और कल फिर से पूरा देश स्वतन्त्रता दिवस कीवर्षगाँठ पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाएगा... अपने सहित सभी को स्वतन्त्रता दिवस कीहार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ...स्वतन्त्रता – आज़ादी – व्यक्ति को जब उसके अपनेढंग से जीवंन जीने का अवसर प्राप्त होता है तो निश्चित र
पथ पर बढ़ते ही जाना हैअभी बढ़ाया पहला पग है, अभी न मग को पहचाना है |अभी कहाँ रुकने की वेला, मुझको बड़ी दूर जाना है ||कहीं मोह के विकट भँवर में फँसकर राह भूल ना जाऊँ | कहीं समझकर सबको अपना जाग जाग कर सो ना जाऊँ |मुझको सावधान रहकर ही सबके मन को पा जाना है ||और न कोई साथी, केवल
रात भर से रुकरुक कर बारिश हो रही है - मुरझाई प्रकृति को मानों नए प्राण मिल गए हैं... वो बातअलग है कि दिल्ली जैसे महानगरों में तथा दूसरी जगहों पर भी - जहाँ आबादी बढ़ने केसाथ साथ “घरों” की जगह “मल्टीस्टोरीड अपार्टमेंट्स” के रूप में कंकरीट के घनेजंगलों ने ले ली है... बिल्डिंग
लहरों का या खेल अनोखा, लहरों कायह खेल |एक लहर इस तट को जाती, दूजी उसतट को है जाती कभी कभी पथ में हो जाता है दोनोंका मेल ||अनगिन नौका और जलयान यहाँ हैंलंगर डाले रहते और अनगिनत राही इस उस तट परनित्य उतरते रहते |इसी तरह तो वर्ष सदी और कल्पयहाँ हैं बीते जाते पर न कभी रुकने पाता है ऐसाअद्भुत खेल ||एक सना
“देशज गीत” जिनगी में आइके दुलार कइले बाटगज़ब राग गाइके सुमार कइले बाटनीक लागे हमरा के अजबे ई छाँव बा कस बगिया खिलाइ के बहार कइले बाट॥......जिनगी में आइके दुलार कइले बाटफुलाइल विरान वन चम्पा चमेलीकान-फूंसी करतानी सखिया सहेलीमनवा डेरात मोरा पतझड़ पहारूरात-दिन सावन जस फुहार कइ
इसी धरा , इसी जमीं पर जीवन मुझे हर बार मिलेहे जन्म भूमि ! माते धरतीहर जन्म में तेरा प्यार मिले।। कितनी प्यारी ये धरती हैंकितनी हैं इसकी सुन्दरताइसकी माटी की सौंधी महकतन मन को कर देती ताजाकितनी शक्ती हैं तुझमें माँहम सब के बोझ को है झेलेहे जन्म भूमि
नमस्कार,स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर|"मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी|आज हम लेकर आये है वसीम महशर सौरिखी जी का सुन्दर गजल "फूलों में भी, काँटों में भी "|आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचना
मुझमें ही आदि, अन्त भी मैं, मैं ही जग केकण कण में हूँ |है बीज सृष्टि का मुझमें ही, हर एक रूप मेंमैं ही हूँ ||मैं अन्तरिक्ष सी हूँ विशाल, तो धरती सी स्थिर भी हूँ |सागर सी गहरी हूँ, तो वसुधा का आँचल भी मैं ही हूँ ||मुझमें है दीपक का प्रकाश, सूरज की दाहकता भी है |चन्दा की शी
छंद–दिग्पाल (मापनी युक्त) मापनी -२२१ २१२२ २२१ २१२२ “मुक्तक” जब गीत मीत गाए मन काग बोल भाए। विरहन बनी हूँ सखियाँ जीय मोर डोल जाए। साजन कहाँ छुपे हो ले फाग रंग अबिरा- ऋतुराज बौर महके मधुमास घोल जाए॥-१ आओ न सजन मेरे कोयल कसक रही है। पीत सरसो फुलाए फलियाँ लटक रही है। महुवा
मन के भीतर एक तीर्थ बसा, जो है पुनीत हर तीरथ से जिसमें एक स्वच्छ सरोवर है, कुछ अनजाना, कुछ पहचाना |इस तीरथ में मन की भोली गोरैया हँसती गाती है है नहीं उसे कोई चिंता, ना ही भय उसको पीड़ा का ||चिंताओं के, पीड़ाओं के अंधड़ न यहाँ चल पाते हैं हर पल वसन्त ही रहता है, पतझड़ न यहाँ
काले मेघा जल्दी से आ, भूरे मेघा जल्दी से आ ||घाम ये कैसा चहक रहा है, अँगारे सा दहक रहा है |लुका छिपी फिर अब ये कैसी, मान मनुव्वल अब ये कैसी ||कितने आँधी तूफाँ आते, धूल धूसरित वे कर जाते पल भर में धरती पर अपना ताण्डव नृत्य दिखावे जाते |तेरी घोर गर्जना से सब आँधी तूफाँ हैं
विरह मिलन की धूप छाँव में सुख दुःख के डगभरने वालाऔर चढ़ाई उतराई में सदा अथक ही चलने वाला |एक बूँद वाले जलघट में अगम सिन्धु भरने का चाहीधूल धूसरित भूखा प्यासा, कहाँ तेरी मंज़िल ओराही ||सुरभित वन उपवन गिरि कानन, जल खग कूजित झीलोंवालीसमझ रहा जिसको तू मंज़िल, शिलाखण्ड वह मीलो
कब तक आशा –दीप जलाऊँ , इस अल्लढ़ मन को समझाऊँ | जनम जनम से मन की राधा , खोज रही अपना मन भावन | तृष्णा नहीं मिटी दर्शन की , रीत गया यह सारा जीवन
“गीत”चलो री हवा पाँव चेतक लिए उड़े जा वहाँ छाँव चंदन हिए जहाँ वास सैया सुनैनन भली प्रभा काल लाली हिमालय चली॥सुना है किसी से वहाँ है प्रभा बढ़ो आज देखूँ पिया की सभा प्रकृति है दिलों में प्रसूना भली- सजा लूँ गजारा सजा के चली॥ अनेकों भरी है वहाँ पै दवा नुरानी सुहानी जहाँ की हव
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*कवयित्री विशेषांक* के लिए रचनाएँ आमंत्रित------
अपने नाम की Ringtone Download कैसे करें ? नमस्कार, अगर आपने "अपने नाम की Ringtone Download कैसे करें ?" Search कर रहे हैं,तो आपकी खोज सफल हुई |मतलब आप सभी वेब-ब्लॉग पर आये है |आज में अपने नाम की रिंगटोन डाउनलोड करके बताऊंगा |जिससे की आपको अपने नाम की रिंगटोन download करने में कोई..................!
होली है फागुन का महीना है, उड़ रहा है अबीर होली का पर्व है रे, मनवा हुआ अधीर चले पिचकारी सारा राहोली है आरा रारा रा ---इस होली के पर्व को, बड़े मौज से मनाएँहोली होय गुलाल की, पानी सभी बचाएँ उड़े गुलाल सारा राहोली है आरा रारा रा ---होली के रंगों से सीखो सामंजस्य बनाना संगठित रहना