
और चढ़ाई उतराई में सदा अथक ही चलने वाला |
एक बूँद वाले जलघट में अगम सिन्धु भरने का चाही
धूल धूसरित भूखा प्यासा, कहाँ तेरी मंज़िल ओ राही ||
सुरभित वन उपवन गिरि कानन, जल खग कूजित झीलों वाली
समझ रहा जिसको तू मंज़िल, शिलाखण्ड वह मीलों वाली |
भग्न मनोरथ, पग पग पर दी तुझे दिखाई असफलता ही
बिना रुके तू चला जा रहा, कहाँ तेरी मंज़िल ओ राही ||
बात न पूछो तुम साथी की, ये बादल आते जाते हैं
जीवन की चंचल लहरों पर कब हम किसे रोक पाते हैं |
मधुर मिलन तो घड़ी दो घड़ी, पल भर ही पी की गलबाँही
बिना रुके तू चला जा रहा, कहाँ तेरी मंज़िल ओ राही ||
प्रिय प्रहसन ऊषा का पल भर, रह जाता देखा अनदेखा
दिन दोपहरी सन्ध्या रजनी, फिर अनन्त जीवन का लेखा |
सन्ध्या का संकेत समझ ले, जो तेरा पथ सम्बल राही
बिना रुके तू चला जा रहा, कहाँ तेरी मंज़िल ओ राही ||
आशाओं की चिता जलेगी, रथ टूटेंगे अरमानों के
दिन रहते काफ़िला रुकेगा, पंख जलेंगे परवानों के |
लेकिन बस तुम तुम्हीं रहोगे, और तुम्हारी मंज़िल राही
बिना रुके तू चला जा रहा, कहाँ तेरी मंज़िल ओ राही ||