काले मेघा जल्दी से आ, भूरे मेघा जल्दी से आ ||
घाम ये कैसा चहक रहा है, अँगारे सा दहक रहा है |
लुका छिपी फिर अब ये कैसी, मान मनुव्वल अब ये कैसी ||
कितने आँधी तूफाँ आते, धूल धूसरित वे कर जाते
पल भर में धरती पर अपना ताण्डव नृत्य दिखा वे जाते |
तेरी घोर गर्जना से सब आँधी तूफाँ हैं भय खाते
आकर उनको दूर भगा तू, वसुन्धरा का मन हरषा तू ||
सूख रही हैं ताल तलैया, सूख रही हैं सागर नदियाँ
रूठ रहे हैं गाय बछरिया, रूठ गई है मस्त गोरैया |
कोयल की पंचम है रूठी, भँवरे की भी गुँजन रूठी
आके सबको आज मना तू, धरती पर हरियाली ला तू ||
माना हमने जंगल काटे, सारे पेड़ कर दिए नाटे
पर इन्सानी अपराधों का इनको अब तू दण्ड न दे रे |
ये सब तेरा ही मुँह ताकें, तुझसे ही हैं आस लगाएँ
इनको थोड़ी राहत दे दे, पूरी इनकी चाहत कर दे ||
तू रूठा तो साथ में तेरे वसुन्धरा भी रूठ रहेगी
अपनी वसु सन्तानों को जगती से फिर वह दूर रखेगी |
होगा क्या फिर आज सोच ले, जग के मन की व्यथा समझ ले
दाने पानी को तरसें सब, ऐसा मत तू प्रण अब ले रे ||
पर गुस्से में नहीं बरसना, प्यार भरा तू राग सुनाना
और ता धिन मृदंग की लय पर इस सारे जग पर छा जाना |
ताल विलम्बित में तू आना, गत के संग फिर भाव दिखाना
प्यारी मस्त बिजुरिया संग मस्ती में भर फिर नर्तन करना ||