🌿दिनांक :-02/05/22🌿
🌺सुनो ना दैनन्दिनी ,
गर्मी का प्रकोप बढ़ गया है। दिनरात कूलर चलता रहता है। इस बार लाइट का बिल बहुत ज्यादा आएगा ।
लेकिन आए तो आए, क्या करें ! गर्मी भी तो ज्यादा है। बीमार होकर मेडिसिन में खर्च करने से तो अच्छा है की कूलर चलता रहे।🤷♀️
मटके का पानी जल्दी जल्दी खत्म हो जाता है । उसे बार-बार भरना पड़ता है। जब से कोरोना आया तब से फ्रिज का पानी पीना छोड़ दिया है। मटके का पानी ही पीते हैं।
शहर के पक्के घरों में गर्मी कुछ ज्यादा ही लगती है । हमारे बड़े बुजुर्ग मिट्टी से कच्चे घर बनाते थे। मिट्टी की दीवार को मजबूती देने के लिए उन्हें बहुत मौटा मौटा बनाया जाता था । जिसकी वजह से गर्मियों में दीवारें जल्दी गर्म नहीं होतीं थीं। और सर्दियों में ठंडी हवाएं घर में प्रवेश नहीं कर पातीं थीं।
और पक्के घरों की दीवारें भी काफी चौड़ी बनाई जातीं थीं । यहां तक कि पुराने किलो की दीवार कितनी मौटी मौटी होती है ।
और आजकल तो स्पेस सेविंग की वजह से सिर्फ एक ईंट की दीवार बनाई जाती है।
इसके अलावा कुँए का पानी पीते थे। कुँए का पानी सर्दियों में गर्म गर्म निकलता है और गर्मियों में ठंडा ।
गांव में आज भी लोग प्रकृति का आनंद लेते हैं। और एक हम शहर के रहने वाले ज्यादा सुविधाओं के चक्कर में .....
आज बस इतना ही,
कल मिलते हैं ......😊