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कहानी

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चीतल (स्वर्णमृग) हिरन वर्ग का पशु समझा जाता है। परंतु इसके सींग फंसेदार होते हैं। यह बहुत ही सुंदर होता है। इतना सुंदर कि कभी-कभी शिकारी इसके भयानक हानि पहुँचानेवाले कृत्यों को भूल जाता है। इसकी खाल प

हिंदी में कुछ-न-कुछ लिखने की लत पुरानी है। सन् 1909 में छपा हुआ मेरा एक नाटक सरकार को नापसंद आया। जब्त हो गया और मैं पुलिस के रगड़े में आया। परंतु रंगमंच पर अभिनय करने पर अभिनय करने का शौक था और नाटक

कुछ समय हुआ एक दिन काशी से रायकृष्ण दास और चिरगाँव से मैथिलीशरण गुप्त साथ-साथ झाँसी आए। उनको देवगढ़ की मूर्ति कला देखनी थी - और मुझको दिखलानी थी। देवगढ़ पहुँचने के लिए झाँसी-बंबई लाइन पर जालौन स्टेशन

दो सौ वर्ष के लगभग हो गए, जब पूना में रामशास्त्री नाम के एक महापुरुष थे। न महल, न नौकर-चाकर, न कोई संपत्ति। फिर भी इस युग के कितने बड़े मानव! भारतीय संस्कृति की परंपरा में जो उत्कृष्ट समझे जाते रहे है

मुहम्मदशाह औरंगजेब का परपोता और बहादुरशाह का पोता था। 1719 में सितंबर में गद्दी पर बैठा था। सवाई राजा जयसिंह के प्रयत्न पर मुहम्मदशाह ने गद्दी पर बैठने के छह वर्ष बाद जजिया मनसूख कर दिया। निजाम वजीर ह

जब महमूद गजनवी (सन 1025-26 में) सोमनाथ का मंदिर नष्ट-भ्रष्ट करके लौटा तब उसे कच्छ से होकर जाना पड़ा। गुजरात का राजा भीमदेव उसका पीछा किए चल रहा था। ज्यों-ज्यों करके महमूद गजनवी कच्छ के पार हुआ। वह सिं

रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुर

'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

उन ज़िलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूँद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गाँववालों ने कुछ पत

"देख स्वामी, पिछली बार मैंने सिर्फ़ तुम्हारे कहने पर तुम्हारे और तुम्हारे सारे दोस्तों के साथ जी भर के होली खेली थी और दीवाली पर तुम्हारे घर पर आतिशबाज़ी के मज़े लिए थे।" मालगुडी के मुख्य पार्क के स्केटि

सत्य, शेखर सोच रहा था, सूरज की तरह है। मेरा ख़्याल है कि कोई भी आदमी बिना आंखें झपकाए या चौंधियाए हुए इसे सामने से देख नहीं सकता। वह महसूस करता था कि, सुबह से शाम तक, मानवी संबंधों का तत्व सत्य को कम

अचानक बरसात शुरू हो गई। उसे जो अकेली सुरक्षा प्राप्त हो सकती थी, वह था, सड़क के किनारे खड़ा, विशाल तने और ऊपर फैली शाखाओं वाला बरगद का पेड़। वह निरपेक्ष भाव से नीचे गिरते पानी को देखता रहा, जिसका झोंक

ठीक दोपहर के समय वह अपना थैला खोलता और ज्योतिष की दुकान लगाता : दर्जन भर कौड़ियाँ, कपड़े का चौकोर टुकड़ा जिस पर कई रहस्यमय रेखाएं खिंची थीं, एक नोटबुक ताड़पत्रों की एक किताब। उसके माथे पर बहुत-सी भभूत

सोम को यह सोचकर अच्छा लग रहा था कि उसकी पाँच साल की मेहनत अब पूरी हो रही है। उसने अपने जीवन में बहुत-सी मूर्तियां बनाई थीं लेकिन इतना बड़ा काम कभी नहीं किया था। वह अक्सर अपने से कहता था कि उसकी बनाई न

कन्नन अपनी झोंपड़ी के दरवाजे पर बैठा गाँव के लोगों को आते-जाते देख रहा था। तेली सामी अपने बैल को हाँकता सड़क से गुजरा। उसे देखकर बोला, ‘आज आराम करने का दिन है ? तो शाम को मंटपम में आ जाना।” कई और लोग

कमलेश्वर जी से मेरी पहली मुलाकात 1957 में इलाहाबाद में प्रगतिशील लेखक संघ के एक बड़े आयोजन में हुई थी। मैं तब कलकत्ता में रहती थी और लेखन में बस कदम ही रखा था। राजकमल प्रकाशन से मेरा एक कहानी संग्रह छ

(मध्यवर्गीय परिवार के फ़्लैट का एक कमरा। एक महिला रसोई में व्यस्त है। घंटी बजती है। बाई दरवाज़ा खोलती है। रजनी का प्रवेश।) रजनी: लीला बेन कहाँ हो...बाज़ार नहीं चलना क्या? लीला: (रसोई में से हाथ पोंछ

संध्या गहराने को थी, जब विद्या के पति जयदेव अपने काम से वापस आए, और विद्या ने घर का दरवाज़ा खोलते हुए देखा, उनके साथ एक अजीब-सा दिखता आदमी था, बहुत मैला-सा बदन और गले में एक लंबा-सा कुर्ता पहने हुए...

अंगूरी, मेरे पड़ोसियों के पड़ोसियों के पड़ोसियों के घर, उनके बड़े ही पुराने नौकर की बिल्कुल नई बीवी है। एक तो नई इस बात से कि वह अपने पति की दूसरी बीवी है, सो उसका पति ‘दुहाजू’ हुआ। जू का मतलब अगर ‘जू

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