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कहानी

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रंजना अपने दिल्ली प्रवास की तैयारी करते हुए बहुत खुश थी, क्योंकि दिल्ली में उसके अपने बहुत खास मित्र रहते थे। उसने सोचा दिल्ली जाने से एक पंथ दो काज हो जाएंगे। अपने संस्थान का कार्य भी होगा और अपने वि

प्रतापगढ़ के राजा महेंद्र सिंह के पास के बहुत ही सुन्दर घोड़ी थी। राजा ने उसका नाम अश्विका रखा था। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये थे। वह घोड़ी राजा के लिए पूर्णतः वफादार थीI  राजा और

एक बार गुरु रविदास की बुआ जब उनसे मिलने के लिए आईं तो उनके लिए एक सुंदर चमड़े का खरगोश ले आईं। उस खिलौने को पकड़कर, चारपाई पर बैठकर, बालक रविदास खेल रहे थे। खेलते-खेलते अपने चरण कमलों से वे उस खरगोश क

गुरु रविदास प्रतिदिन सत्संग किया करते थे। उनके भेदभाव रहित विचारों का संगत पर बहुत प्रभाव होता था। हिंदू-मुसलिम दोनों ही समुदाय के लोग उनके पास परमार्थ लाभ करने के लिए आते थे। एक दिन की घटना है। एक श

काशी में एक विधवा सेठानी रहती थी। उस सेठानी का पहले बड़ा परिवार था। एक बार वे लोग तीर्थयात्रा को गए। दैवयोग से वहाँ नाव दुर्घटना हो गई, जिससे सारा परिवार पानी में डूब गया। केवल एक बहू बची रही, जो गर्भ

गुरु रविदास कोमल हृदय के महापुरुष थे। एक बार लहरतारा तालाब जो कि कबीर की प्रकटस्थली है, उन दिनों वहाँ पर घना जंगल था, वहाँ एकांत रमणीय स्थान पर गुरु रविदास ध्यान की अवस्था में बैठे थे। आसपास प्रकृति क

गुरु रविदास अपने पवित्र कार्यों एवं पावन चरित्र के प्रभाव से उस काल में अद्वितीय ख्याति प्राप्त कर चुके थे। एक छोटी समझी जानेवाली जाति के महापुरुष का समाज में ऐसा प्रभाव देखकर कुछ लोग उनसे ईर्ष्या करन

मीराबाई के जन्मस्थान मेड़तियों के इतिहास एवं राठौरों के भाटों की बहियों द्वारा मीराजी का जन्म श्रावण सुदी एकम शुक्रवार संवत्‌ 1561 माना गया है। बचपन में मीरा की माता का देहांत हो गया था। मीरा इकलौती स

कन्या के रूप में गंगाजी का आना एक बार गुरु रविदास ने एक भंडारा किया। इस भंडारे में कन्या के रूप में स्वयं गंगाजी आईं। कन्या के अलौकिक रूप पर एक राजा मोहित हो गया। उसने गुरु रविदास के पास संदेश भेजा क

अवर कहो इतिहास को भगवनजस सुख दानि। हरिद्वार यात्री मिल आए, तिन दर्शन जन केरे पाए। तिनको पूछा लखि रविदासा, जाहु कहाँ तुमहीं सुख रासा। ब्रह्मकुंड गंगा इस्नाना। नहावन चल तहाँ हम जाना। तब रविदास बचन अ

बरस सात को भयौं है जबही, नौधा भक्ति चलाई तब ही। अस भगवन की सेवा करई, सतगुरु कहो सो सीव न तरई॥ गुरु रविदास जब सात वर्ष के हुए तो श्रदूधालु जन उनके पास आकर भक्ति का आनंद प्राप्त करने लगे। बरस सात औ

संत महापुरुष समस्त समाज के लिए होते हैं। उनका संबंध केवल एक जाति या वर्ण के साथ नहीं होता। वे सर्वहित के लिए और सबको सही राह पर चलने के लिए प्रेरणा देते हैं। गुरु रविदास के पवित्र जीवन और साधुता को दे

एक बार गुरु रविदास की बुआ जब उनसे मिलने के लिए आईं तो उनके लिए एक सुंदर चमड़े का खरगोश ले आईं। उस खिलौने को पकड़कर, चारपाई पर बैठकर, बालक रविदास खेल रहे थे। खेलते-खेलते अपने चरण कमलों से वे उस खरगोश क

मौत का ताबूत पार्ट 1 दरयाई नील बहुत ही ख़ामोशी से वह रहा था आधी रात का बक्त था क़दीम मिसर के गहरे नीले आसमान पर सितारे सफ़ेद मोतियों की तरह चमक रहे थे दरयाई नील के पानी मेँ आसमान के सितारों का अक्स झ

मौत का ताबूत पार्ट 1 दरयाई नील बहुत ही ख़ामोशी से वह रहा था आधी रात का बक्त था क़दीम मिसर के गहरे नीले आसमान पर सितारे सफ़ेद मोतियों की तरह चमक रहे थे दरयाई नील के पानी मेँ आसमान के सितारों का अक्स झ

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बाहर बारिश हो रही थी... बहुत तेज थी बारिश... इतनी तेज की उसकी बूंदे खिड़कियों से अंदर आकर पूरे घर को भिगो रही थी... बादल गरजने की आवाज से कबीर की आंख खुली.... कबीर उठा और अपने घर की सभी खिड़किय

कतरों में जी जिंदगी.... हर कतरे में जिंदगी को ढूंढा... कभी मिली कभी खो गई...एक ख्याल के रास्ते में जब चल निकले तो जिंदगी पीछे पीछे चल दी... मुलाकात हुई उससे लेकिन तब जब उसकी आस खत्म हो चुकी थी...

तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची।

बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवह

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