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कहानी

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बृहस्पतिवार का व्रत’ कहानी उस ज़मीन पर खड़ी है, जिससे मैं वाकिफ नहीं थी। एक बार एक अजनबी लड़की ने आकर मिन्नत-सी की कि मैं उसकी कहानी लिख दूँ। और एक ही साँस में उसने कह दिया—‘मैं कॉलगर्ल हूँ।’ उसी से,

पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया, सड़कों की तरह और वे दोनों तमाम उम्र उन सड़कों पर चलते रह

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी-'नीचे के कपड़े" उसका नाम भूल गई हूँ । कहानी में सही नाम लिखना नहीं था, और उससे एक बार ही मुलाकात हुई थी, इसलिए नाम भी याद से उतर गया है... जब वह मिलने आई थ

उसे अब नीलम कोई नहीं कहता था। सब शाह की कंजरी कहते थे। नीलम को लाहौर हीरामंडी के एक चौबारे में जवानी चढ़ी थी। और वहां ही एक रियासती सरदार के हाथों पूरे पांच हजार में उसकी नथ उतरी थी। और वहां ही उसके

वे दोनों एक-दूसरे को आमने-सामने देखकर नीचे धरती की ओर देखने लग पड़ीं। नीचे कुछ भी नहीं था, पर दोनों को पता था कि दोनों के बीच एक लाश है... ''सब लोग चले गए ?'' ''सब लोग जा सकते थे इसलिए चले गए। माँ द

पालक एक आने गठ्ठी, टमाटर छह आने रत्तल और हरी मिर्चें एक आने की ढेरी "पता नहीं तरकारी बेचनेवाली स्त्री का मुख कैसा था कि मुझे लगा पालक के पत्तों की सारी कोमलता, टमाटरों का सारा रंग और हरी मिर्चों की सा

 शहर से दूर एक घने जंगल में एक आम का पेङ था और एक लंबा और घना नीम का पेङ था | नीम का पेङ अपने पडोसी पेङ से बात तक नहीं करता था उसको अपने बङे होने पर घमंड था | एक बार एक रानी मधुमख्खी नीम के पेड़

पिछले अध्याय में हमने पढ़ा कि झारखंड के एमएलए की बेटी की शिखा की शादी की तैयारियाँ हो रही है और उसके कॉलेज के जमाने की सहेली मौलि शादी में आने वाली है। मौलि के आने की खबर से शिखा की खुशी का ठिकाना न थ

धनबाद के हीरापुर में स्थित सहाय सदन, झारखंड के MLA शांतिकान्त सहाय का स्थायी पता, सहाय सदन को अगर बाहर से देखें तो सिर्फ ऊँची दीवारें दिखाई देती हैं जिसपे कांटे लगे हैं और काले रंग की लम्बी-चौड़ी गेट ह

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इससे पहले कि जगत बाबू के मान-सम्मान पर लगे बट्टे की आग का उठता धुआँ उनके आँख-कान से होता हुआ फेफड़ों में घुसकर साँस लेना दूभर करता, उन्होंने गाँव-समाज से सदा के लिए मुँह मोड़ते हुए अपने बोझिल कदम शहर की

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दीपक का एक सहपाठी नन्दू गांव से आठवीं पास करके अपने एक रिश्तेदार के साथ मुम्बई चला गया था। दो वर्ष के बाद जब वह गांव वापस आया तो उसे देखकर दीपक अचंभित रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या सचमु

शाम का समय,खेत से लौटते पशुओं की आवाज़ और अस्ताचल को जा रहे सूर्य की लालिमा के बीच इस उदासीन और शांत परिवेश को चीरती हुई एक मोहित करने वाली बांसुरी की आवाज़.....एक छोटे से घर, घर नहीं उसे एक कमरा कह स

एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। मंदिर में लकड़ी का काम बहुत था इसलिए लकड़ी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे। यहां-वहां लकड़ी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहत

महिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक वणिक्‌-पुत्र रहता था । उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार में पर्याप्त धन पैदा किया था; किन्तु उतने से सन्तोष नहीं होता था; और भी अधिक धन कमाने की इच्छा थी । छः

एक दिन बादशाह अकबर और बीरबल महल के ऊपर छत पर घूम रहें थे , उसी दिन बादशाह अकबर को एक मुगल बादशाह ने कुछ आधुनिक तोपें भेंट दी थी ,तो बादशाह को उन तोपों पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था , उसे उन्होंने ठीक अ

‘‘प्रेमान्त‘‘

--राजा सिंह

रायल
कैफे के सामने सिनेमा हाल है। सामने रोड के

देखना

खुद से होता हैं

सुना

दूसरों को जाता हैं


दूसरे क्या

माना कि

बाँध दिया था

गांधारी को

उसकी इच्छा के विरुद्ध

अंधे वर के साथ<

कहानी


यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, समानता संयोग से हो सकती है।

राकेश

वह द्विविधा में थी कि सतीश के प्रस्ताव को किस तरह स्वीकार करे . उसके सुदर्शन व्यक्तित्व से वह प

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