मनीषा और विकास की ज़िंदगी यूं तो बहुत अच्छे से चल रही थी, घर में किसी सुविधा की कमी नहीं थी। फिर भी मनीषा को एक अकेलापन हमेशा खाए जाता, विकास भी हाई सैलरी वाली जॉब कर रहा था तो वहीं मनीषा एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने लगी जिसका उद्देश्य पैसा कमाना नहीं सिर्फ अपनी ज़िंदगी में आए खालीपन को भरना था, जो उसे छोटे बच्चों के बीच रहकर उसे बिल्कुल नहीं सताता था।
मनीषा के माता पिता का बचपन में ही तलाक हो चुका था, उसकी परवरिश अंदर से टूट चुकी औरत ने की थी, हालांकि उसके पिता उससे हर महीने मिलने आया करते थे और उन्हें उनकी ज़रुरत के मुताबिक पैसे देकर चलते बनते थे। मनीषा को अब शादी के नाम से चिढ़ होने लगी थी, उसकी मां हमेशा उसे समझाती रहती कि सबकी शादी असफल हो ये ज़रुरी नहीं।
एक दिन मनीषा के पिता उसके लिए बहुत अच्छे घर का रिश्ता लेकर आए और कहने लगे कि “मैं और तुम्हारी मां अब बूढ़े हो चुके है, हमारी ज़िंदगी का अब कोई भरोसा नहीं तुम प्लीज़ हां कह दो लड़का अच्छा है.”
इससे पहले भी वो मनीषा के लिए वो कई रिश्ते ला चुके थे लेकिन वो हर बार कोई ना कोई बहाना बना देती, लेकिन इस बार उसके पिता ऐसा लड़का लेकर आए कि वो कोई भी बहाना ना बना पाए।विकास एक आकर्षक, पढ़ा लिखा,अच्छा ख़ासा कमाने वाला लड़का था।
मनीषा ने टालने के लिए कहा कि उसे लगता है कि शायद उन दोनों के स्वभाव अलग है तो वो दोनों साथ खुश नहीं रह पाए, तब उसके पिता ने कहा कि सारी दुनिया में सबके स्वभाव एक से हो ये ज़रुरी तो नहीं और इस तरह विकास और मनीषा की शादी हो गई दोनों में कभी लड़ाई झ़गड़ा नहीं होता था।
मनीषा को लगा शायद यही उसका सच्चा प्यार है हर शादी का अंजाम तलाक हो ये ज़रुरी तो नहीं। कुछ दिनों बाद मनीषा ने विकास से कहा कि वो सिर्फ काम में ही लगता रहता क्यों ना वो दोनों कही घूमने चले तो विकास हमेशा व्यस्त रहने का बहाना बनाने लगा। एक दिन उसने मनीषा के साथ फ़िल्म देखने जाने का प्लॉन बनाया, मनीषा अपने स्कूल में क्लॉस ख़त्म होने के बाद जल्दी ही घर आ गई उसने काफी देर विकास का इंतज़ार किया थोड़ी देर बाद उसका फ़ोन आया और वो कहने लगा “ सॉरी डियर आज ऑफिस में बहुत काम है नहीं आ पाउंगा तुम्हें तो पता है आजकल नौकरी करना कितना मुश्किल काम हो गया है”
मनीषा ने कहा “कोई बात नहीं कभी और चलेंगे.”
इस बात को कई दिन बीत गए और एक दिन मनीषा को पता चला कि उस दिन विकास अपने ऑफिस के दोस्त करण के साथ डिनर पर चला गया, फिर भी वो चुप रही उसे पता था कि बहस करने से रिश्तों में कड़वाहट और भी ज्यादा बढ़ जाती है, विकास उसकी भावनाओं का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करता ये बात उसे अच्छी तरह समझ में आ चुकी थी। उसके बाद मनीषा ने उसे कभी बाहर चलने को नहीं कहा। एक दिन उसने अखबार में एक विज्ञापन पढ़ा जिसमें लिखा था सुजाता की कैलीग्राफी क्लॉसेस। उस नंबर पर कॉल किया तो पता चला कि वो तो उसके पास के मुहल्ले की ही क्लॉस थी। मनीषा का पहला दिन था, वहां करीब 50 लड़कियां कैलीग्राफी सीख रही थी, तभी मनीषा ने क्लॉस के अंदर प्रवेश किया और बोली “क्या मैं अंदर आ सकती हूं?”
तब सुजाता बोली “हां बैठो.”
सुजाता की उम्र करीब 60 साल थी, वो कॉटन की साड़ी पहने हुए माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी और मांग में सिंदूर और मंगलसूत्र पहने हुए थी।वो काफी मितभाषी लग रही थी, बस अपने काम से काम रखने वाली महिला, इसी तरह मनीषा को कई दिन हो गए कैलीग्राफी सीखते हुए, वहां उसकी दो तीन लड़कियों से दोस्ती भी हो गई।
एक दिन मनीषा क्लॉस में आधा घंटा पहले ही पहुंच गई तभी उसने देखा सुजाता बहुत सुरीला गाना गा रही हैबिल्कुल वैसे जैसे कोयल वसंत ऋतु में गाती हो। तभी अचानक वो मनीषा को देखकर रुक गई बोली "अरे आज तुम जल्दी आ गई."
“हां आज मेरे स्कूल की छुट्टी है तो मुझे लगा थोड़ा पहले निकल लूं." मनीषा ने जवाब दिया।
तभी सुजाता ने मनीषा को अपने किचन में बुलाया और कहा "ये लो मठरियां खाओ मैंने बनाई है.”
मनीषा भी ख़ुशी ख़ुशी वो मठरियां खाने लगी तभी उसकी नज़र दीवार पर टंगी तस्वीर पर गई, एक बुजुर्ग की तस्वीर दीवार पर लगी थी जिस पर फूलों की माला लगी थी। तब उसे लगा कि ये तस्वीर उनके पति की तो नहीं हो सकती है क्योंकि वो तो सुहागन की तरह रहती है। तभी उसने सकुचाते हुए कहा “आंटी ये किसकी तस्वीर है?”
“ये मेरे पति की तस्वीर है जो 5 साल पहले इस दुनिया से जा चुके है.” सुजाता ने कहा।
“तो आप यहां अकेले रहती हो.” मनीषा ने कहा।
सुजाता ने जवाब दिया “हां मेरी बेटी की शादी इसी शहर में हुई तो वो मुझे हर रविवार मिलने आती जाती रहती है.”
मनीषा ने कहा “आप इस उम्र में अकेले क्यों रहती हो?”
“मेरी बेटी मुझे अपने पास बुलाती है लेकिन मुझे अपने स्टूडेंट्स को कैलीग्राफी सिखाकर ही सुकून मिलता है।ये काम मैंने तब शुरू किया था जब मेरे पति को लकवा मार गया था और उनकी नौकरी चली गई थी। मेरी बेटी उस वक्त कॉलेज में ही पढ़ रही थी। घर का खर्च चलाने के लिए मैंने ये क्लॉसेस शुरु की और धीरे- धीरे मुझे ये काम अच्छा लगने लगा और मैं इसे छोड़ ही नहीं पाई. शाम के वक्त मैं दो लड़कियों को गाना गाना भी सिखाती हूं। तुम शायद मेरा सुहागन वाला रुप देखकर हैरान हो ना ? भले ही वो इस दुनिया से चले गए हो लेकिन अभी भी मेरी स्मृतियों में जीवित है। हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ा करते थे वहीं से शुरु हुई दोस्ती का सिलसिला शादी में बदल गया, साथ छूट गया लेकिन यादों की परछाई अभी भी मेरे मन में उमड़ती रहती है.”
थोड़ी ही देर में और भी लड़कियां वहां आ गई और मनीषा सोचने लगी उसके और विकास के बीच भले ही वो मानसिक लगाव ना हो जो सुजाता का अपने पति के प्रति था, लेकिन दुनिया में शायद निस्वार्थ प्रेम जैसी बात झूठ नहीं है ये उसे आज पता चली, कमाल कि बात है इस दुनिया में दो लोग दिन रात साथ रहकर भी साथ नहीं रहते और कुछ लोग अलग रहकर भी ज़ुदा नहीं होते हैं।
तभी सुजाता ने अपने उस कमरे की तरफ मनीषा को चलने को कहा जहां कैलीग्राफी की क्लॉस लगती थी। पता नहीं क्यों आज उसका ध्यान कैलीग्राफी सीखने में कम लग रहा था बल्की सुजाता की तरफ़ ज्यादा जा रहा था जो उसके घर के आंगन में लगे सदा सुहागन के फूल की तरह लग रही थी।
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