श्याम गहरे सांवले रंग का लड़का था जिसका कद 5 फीट 8 इंच था और उसकी काठी मध्यम थी, शायद उसके
सांवले सलौने
और मनोहर रुप के चलते ही उसके माता-
पिता ने उसका ये नाम रखा था। वो अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की की तरफ काफी आकर्षित था, जो कि एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी। मध्यम कद काठी की उस लड़की का नाम उसके रुप के अनुरुप ही "श्वेता" था, वो अत्यंत गौरवर्ण थी और उसके बाल रेशम की तरह मुलायम और लंबे थे, उसके गालों पर पड़ने वाले डिंपल ने उसकी सुंदरता में चार चांद लगा दिए थे. उसके नैन नक्श भी ठीक ठाक थे।28 वर्षीय श्याम अपने शहर के कोर्ट में सरकारी नौकरी में था। उसकी दो और बहनें थी जो कि अभी पढ़ रही थी एक बीए पास हो चुकी थी और प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देख रही थी, तो दूसरी बहन फ़ैशन डिज़ायनिंग के आखिरी साल में पढ़ रही थी।
श्वेता भी श्याम की भावनाओं से वाकिफ़ थी और कहीं ना कहीं उसे पसंद करने लगी, वो कुछ महीने पहले ही श्याम के पड़ोस वाले घर में किराए से रहने आई थी। उसकी मां विधवा थी और एक छोटा भाई था जो कि एमबीए के पहले साल में था, उसकी मां पिता के जाने के बाद सिलाई-कढ़ाई का काम करके घर चला रही थी लेकिन घर खर्च चलाना मुश्किल था तो ऐसे में श्वेता ने नर्सिंग का प्रशिक्षण लेकर अस्पताल में काम करना शुरु कर दिया। उसकी नौकरी को 6 साल हो चुके थे वो पूरे 27 बरस की हो चुकी थी, उसके लिए कई रिश्ते आ रहे थे लेकिन श्वेता की मां चाहती थी कि उसके भाई की पढ़ाई लिखाई पूरी हो जाए और जब वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तभी श्वेता की शादी हो जिससे उन्हें कोई आर्थिक दिक्कत ना हो।
एक दिन श्याम घर पर अकेला था उसकी मां और बहनें किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी, अचानक उसके घर की डोरबेल बजी। श्वेता दरवाजे पर खड़ी थी श्याम तो जैसे इसी बात का इंतज़ार कर रहा था कि कब वो दिन आए जब वो श्वेता से रुबरु हो। उसके मन में यह डर भी था कि श्वेता की उसके प्रति क्या भावना है। वो उसे अपने लायक समझती है भी या नहीं।
श्याम ने कहा “कैसे आना हुआ आपका? बैठिए.”
“जी मेरे घर का वाटर प्यूरीफ़ायर खराब हो गयाहै तो क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो, जो इसे सुधार दे.” श्वेता ने कहा।
“जी ये लिजिए इलेक्ट्रिकल शॉप वाले का नबंर.” श्याम ने कहा।
“शुक्रिया, मैं चलती हूं.” श्वेता ने कहा।
“अरे दो मिनिट बैठिए ना.” श्याम ने कहा।
“अरे मैं नाईट शिफ्ट करके आई हूं, बहुत थकी हुई हूं.” श्वेता ने कहा।
“इसलिए तो कह रहा हूं” श्याम ने कहा।
श्याम फिर कहा “मेरे हाथ की बनी चाय पियो सारी थकान मिट जाएगी.”
श्वेता तो यही चाहती क्योंकि घर जाकर तो ना उसके भाई ना उसकी मां को यह फ़िक्र रहती कि वो भी इंसान है। तभी श्याम गरमागरम चाय और बिस्किट ले आया। दोनों में काफी देर गुफ़त्गू हुई और बातों ही बातों में दोनों ने एक दूसरे का फ़ोन नंबर ले लिया।
अब दोनों में फिर कुछ दिन मुलाकात नहीं हुई, श्वेता की नाईट शिफ्ट चल रही थी तो वो सीधे घर पर आकर खाना खाकर सो जाती और श्याम कोर्ट जाने के लिए निकल पड़ता लेकिन श्याम श्वेता के फ़ोन पर रोज़ मैसेज करने लगा, कभी-कभी उसके इमोशनल मैसेज को देखकर श्वेता परेशान हो उठती क्योंकि उसे अपनी ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह का व्यवधान पसंद नहीं था लेकिन वो ये भी नहीं चाहती थी कि श्याम उसकी नज़रों से दूर हो।
एक दिन श्याम ने उसे मैसेज करके पूछ लिया “क्या तुम मेरी हमसफ़र बनोगी ?”
श्वेता ने जवाब दिया “तुम अपनी मां से पूछो कि वो इस बारे में क्या सोचती है?”
तभी श्याम ने कहा “मम्मी से क्या पूछना वो मेरी ख़ुशी में ही ख़ुश रहेगी, नहीं तो मैं तुमको बिना सहमति ही ले जाउंगा.” श्याम ने अति-आत्मविश्वास में आकार बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर डाली।
श्वेता ने अपनी मां को किसी तरह से इस रिश्ते के लिए मना लिया। दोनों एक ही बिरादरी के थे, तो ज्यादा परेशानी भी नहीं आई।
तभी श्वेता की मां का श्याम को फ़ोन आया कि वो अपनी मां को लेकर उनके घर पर आए. श्याम बहुत ख़ुश था वो जैसे ही इस बारे में अपनी मां से बात करने पहुंचा तो उसकी मां काफी नाराज़ हुई। उन्होंने कहा “तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं उस लड़की के लिए हां कहूंगी, उसके परिवार के पास रहने को मकान तक नहीं है और उसकी मां और भाई की जिम्मेदारी अलग। तुम्हारें लिए कई अच्छे घरों के रिश्ते आ रहे है, 10-20 लाख दहेज भी देने को तैयार है। तुम अपनी बहनों की भी तो सोचो जिनकी शादी में भी काफ़ी खर्चा आने वाला है कौन करता है बिना दहेज के शादी आजकल, कम से कम तुम्हारे दहेज से मिले पैसे से ये समस्या तो ख़त्म हो जाएगी। मेरा अपना कोई स्वार्थ नहीं है लेकिन मैं पूरे परिवार के बारे में सोचती हूं, मैं कतई उसकी मां से नहीं मिलुंगी, तुम श्वेता से माफी मांग लो और उससे दूर ही रहो.”
अब श्याम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी वो अपनी घर की जिम्मेदारियों से भी नहीं भाग सकता था क्योंकि वो घर में बड़ा था और उसके पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी उसकी मां ने पिता की पेंशन पर जैसे तैसे उसे पढ़ाया लिखाया। उसकी अपनी मां से बगावत करने की हिम्मत नहीं थी और श्वेता को भूल पाना भी मुश्किल था।
उसकी रातों की नींद उड़ चुकी थी ये सोचकर कि वो अब श्वेता को क्या मुंह दिखाएगा क्योंकि शादी की बात तो उसने ही छेड़ी थी। तभी उसे अपनी दोस्त की याद आई जिसका नाम प्रभा था जो कि एक वकील थी और ज्यादातर तलाक के केस लड़ती थी। एक दिन कोर्ट परिसर के बाहर के केंटीन में उसने प्रभा से मुलाकात की, प्रभा की उम्र 32 साल थी और वो काफी महत्वाकांक्षी स्वभाव की थी जो शादी की झंझट में फंसना नहीं चाहती इसलिए अविवाहित रहने का फ़ैसला कर चुकी थी। श्याम ने सारी बात प्रभा को बताई और कहा “तुम तो दो लोगों को अलग करवाने का काम करती हो लेकिन इस बार सुलह करवानी है तुमको.”
प्रभा ने कहा “मैं किसी को अलग नहीं करवाती लोग खुद आते है तलाक का केस लेकर, मैं तो सिर्फ अपना फर्ज़ निभाती हूं. मैं लोगों को पहले मतभेद सुलझाने का सुझाव भी देती हूं, अगर कोई अपनी बात पर अड़ा ही रहे तो मैं क्या कर सकती हूं? अगर मैं उनका केस नहीं लडूंगी तो कोई और वकील लड़ लेगा.”
प्रभा ने आगे कहा “ओह तो तुम्हारी मां शादी करना चाहती है या सौदा?”
श्याम ने कहा “अरे यार कैसी बात करती हो तुम.”
“सॉरी दोस्त लेकिन लग तो ऐसा ही रहा है कि उनको तुम्हारी ख़ुशियों की कोई परवाह नहीं है. तुम्हारी बहनें पढ़ी लिखी है. वो खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है और खुद भी ऐसा लड़का ढूंढ सकती है जो उनसे पैसों के लिए नहीं प्यार के लिए शादी करे. तुम भी सरकारी नौकरी में हो तो तुम शादी के खर्चें में योगदान दे सकते हो.अगर तुम अपनी मां की बात मानते हो तो हो सकता है कि आजीवन दुखी रहो और अगर उनके ख़िलाफ़ जाते हो तो कुछ वक्त के लिए वो तुमसे नाराज़ रह सकती है.अब तुम ही ये तय करो कि तुमको अपने जीवन में क्या करना है ?”
श्याम को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था। वो प्रभा को धन्यवाद देते हुए अकेले ही अपनी बाईक लेकर श्वेता की मां से रिश्ते की बात करने उसके घर की तरफ निकल पड़ा। श्याम भी सोच रहा था सच तो है अपने परिवार की कुछ दिनों की नाराज़गी से बचने के लिए अपनी भावनाओं का कत्ल करना बेवकूफ़ी ही है।
शिल्पा रोंघे
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