दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल का भविष्य दांव पर लग गया है। अगर ईडी ने उस एक 'लिंक' को साबित कर दिया, तो केजरीवाल का जोखिम में फंसना तय है। ईडी के सूत्रों के मुताबिक, उस लिंक की कड़ियां जुड़ रही हैं। उस लिंक के चलते ही आप के पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह, जेल में पहुंच चुके हैं। केजरीवाल को ईडी के समक्ष पेश होने के लिए तीन समन भेजे गए हैं, लेकिन वे जांच एजेंसी के सामने नहीं पहुंचे। गुरुवार को दिल्ली के एलजी ने मोहल्ला क्लीनिक में फर्जी टेस्ट मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है। ऐसे में मुख्यमंत्री केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की मुसीबत बढ़ना तय है।
ईडी में तीन दशक से अधिक समय तक कार्यरत रहे पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र सिंह बताते हैं, दिल्ली के कथित शराब घोटाले में सबूतों के आधार पर कार्रवाई हुई है। जांच एजेंसी, बिना सबूत के किसी पर हाथ नहीं डालती। जब किसी मामले की कड़ियां, आरोपी से जुड़ती हैं, तभी ईडी उससे पूछताछ करती है। अगर कुछ बरामद करना होता है, तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। ईडी के पास आरोपी के खिलाफ उस मामले में शामिल होने के पुख्ता लिंक है, लेकिन वह पूछताछ में शामिल नहीं होता है, तो उस स्थिति में गिरफ्तारी ही एक विकल्प बचता है। अगर एक व्यक्ति ने जांच एजेंसी को बयान दे दिया है, और उसमें मुख्यमंत्री का नाम सामने आया है, तो उस 'लिंक' की सत्यता का पता लगाया जाता है। वह लिंक मुख्यमंत्री या उनके करीबियों के साथ पुख्ता तौर पर जुड़ता हुआ नजर आता है, तो सीएम केजरीवाल, जोखिम में फंस सकते हैं।
ईडी के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र सिंह के मुताबिक, किसी भी केस की जांच में यह पता लगाया जाता है कि उसमें और कौन-कौन लोग शामिल हैं। उनके बीच किस तरह का लिंक है। क्या वह लिंक मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके करीबियों तक सीधा एवं स्पष्ट जुड़ रहा है। वह लिंक किसी भी रूप में हो सकता है। मतलब, टेलीफोनिक बातचीत, मैसेज का आदान-प्रदान, ईमेल या फेस टू फेस बातचीत, आदि शामिल है। अगर ऐसा कोई पुख्ता लिंक मिलता है, तो जांच एजेंसी, मुख्यमंत्री तक आसानी से पहुंच सकती है। इसके बाद मुख्यमंत्री को समन भेजा सकता है। अगर जांच एजेंसी को लगता है कि केस से जुड़े कुछ जरुरी दस्तावेज जुटाने हैं, तो रेड भी डाली जा सकती है। अगर सर्च होती है तो उसके बाद बयान लिया जाता है। जांच एजेंसी की सारा कार्रवाई, सबूतों के आधार पर निर्भर करती है। किसी व्यक्ति को पूछताछ में शामिल होने के लिए कितने समन जारी हो सकते हैं, इस बाबत कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है। ये एजेंसी की इच्छा पर निर्भर करता है कि किसे कितने समन जारी किए जाएं।
खास बात है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल का नाम, जांच एजेंसी के पास बतौर आरोपी नहीं है। एफआईआर में उनका नाम नहीं है। चार्जशीट में भी केजरीवाल का नाम नहीं है। दोनों जांच एजेंसियों के रिमांड नोट में केजरीवाल के नाम का जिक्र किया गया है। यहां पर एक लिंक होने की बात कही जा रही है। केजरीवाल अपने नोटिस में ईडी से पूछ रहे हैं कि उन्हें बार-बार पूछताछ के लिए क्यों बुलाया जा रहा है। जांच एजेंसी ने इस बात का जवाब नहीं दिया है। आतिशी ने कहा कि केजरीवाल ने ईडी से सवाल किया है, उन्हें पूछताछ के लिए गवाह या आरोपी, किस हैसियत से बुलाया जा रहा है। इसका जवाब भी ईडी ने नहीं दिया है। आतिशी के मुताबिक, भाजपा ने ईडी और सीबीआई को विपक्ष पर निशाना साधने के लिए राजनीतिक उपकरण बना लिया है। केजरीवाल को बार-बार नोटिस इसलिए भेजा जा रहा है, ताकि वे लोकसभा चुनाव में प्रचार नहीं कर सकें। केजरीवाल को गिरफ्तार करने की साजिश हो रही है।