डायरी सखि, आज तो बहुत दिनों के बाद तुमसे मुलाकात हो रही है सखि । इतने विलंब से मिलने का कारण वही है सखि जो मैंने तुम्हें पहले बताया था । मैं अपनी दूसरी पुस्तक "यक्ष प्रश्न" के लिये रचनाओं की प्रू
प्रिय सखी।कैसी हो । मै अच्छी हूं और बरसात मे भीग चुकी थी।सुबह के ग्यारह बजे है ।हम ने आज शैप की छुट्टी की हुई है ।कुछ काम अधूरे रह रहे थे काफी समय से वो पूरे करने थे।उसी काम के लिए हम गये तो बारिश झमा
डायरी सखि, अभी कल ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा था । मैंने भी उसे देखा था । उसे देखकर मैं भी हतप्रभ रह गया । एक बार तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ कि जो कुछ मैं देख रहा था , व
प्रिय सखी।कैसी हो ।आजकल मुलाकात देर से हो रही है थोड़ा क्षमा चाहती हूं।मैने पहले तुम्हें बताया था ना कि हमारे पड़ोस मे एक महिला है जिसका पति कुछ काम धंधा करता नही है और वो कुछ किराने की दुकान से कमाती
डायरी सखि, कुछ लोगों को विवाद पैदा कर विवादों में रहने में बड़ा मजा आता है । और मजे की बात यह है कि ऐसे लोग सोच समझ कर षड्यंत्र पूर्वक अपने ऐजेण्डे के अन्तर्गत हिंदू समाज के देवी देवताओं के नकारा
डायरी सखि, आजकल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की टिप्पणियां बहुत अधिक सुर्खियां बटोर रही हैं । जिस दिन उन्होंने ये टिप्पणियां की थी , वहां पर मौजूद मीडिया ने उन्हें लपक लिया और तुरंत ब्रेकिंग न्
डायरी सखि, आज तो कमाल हो गया । "ठसक" वाले की "ठसक" धरी की धरी रह गई । एक "नाथ" वाले शिंदे ने उसे 99 के फेर में ऐसा उलझाया कि वह 99 के फेर में ही फंस कर रह गया और उसी चकरघिन्नी में अभी तक घू
डायरी सखि, क्या तुम्हें पता है कि ये सिल्वर जुबली फंक्शन क्यों मनाते हैं ? नहीं ना ? पता होगा भी कैसे ? शादी की हो तो पता चलता ? बिना शादी के सिल्वर जुबली जैसे कार्यक्रमों के बारे में तुम क्या जा
किसी का भला न कर सको,तो कोई बात नहीं,पर किसी का बुरा करने का,हमें कोई अधिकार नहीं।गुस्सा आता है,और दिमाग पर छा जाता है,दूसरों का कम,और खुद का नुकसान ज्यादा कर जाता है।क्रोध अकेले आता है,पर साथ में बहु
डायरी सखि, कभी सोचा नहीं था कि ऐसा भी होगा । राजस्थान में दिनांक 28.6.2022 को उदयपुर में एक बहुत ही नृशंस, बर्बर, क्रूर, तालिबानी, पैशाचिक , अमानवीय कार्य हुआ । एक गरीब दर्जी का कुछ जेहादि
घूर तक की जहाँ होती है बन्दगीन बने यंत्र, जिन्दा रहे जिन्दगीहर तरफ प्यार का, बसता संसार हैप्राणि का प्राणि पर, पूरा ऐतबार हैन तो घटता गगन, न ही घटती जमींगाँव है वो जहाँ, रहते हैं आदमीगाँव से शुचि धरा,
खामोशी से करता चल मेहनत,और अपने हुनर को तराशता जा,पहुँचने के लिए अपनी मँजिल पर,अपने रास्तों से बाधाएं हटाए जा।यदि तू जलाता है दिए,दूसरों के रास्तों पर,तो प्रकाशित होता है रास्ता खुद का भी,इसी उजाले से
इस माह दैनन्दिनी 'बाग़-बगीचे की बातें' के अंतर्गत मैंने अपने बाग़-बगीचे के कुछ जरुरी पेड़-पौधों के बारे में आपको कुछ जानकारी साझा दी। इसमें बाग़-बगीचे के सभी पेड़-पौधों की बारे में समयाभाव के कारण बत
दिनाँक: 29.06.2022समय: शाम 7 बजेप्रिय सखी,पता है रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं और कुछ ही गलतफहमियां बड़ी समस्यायों की जड़ हो सकती हैं। कई बार हम अनजाने में अपनों को हर्ट कर देते हैं और आपको इस बात क
सुना है गांव में बादल आये हैं मां के कदमों में झूमकर बरसे हैं कुछ ग़म की बूंदों ने शिकायत की और ढेर सारे खुशी के पानी झरे हैं मां से बोले हैं बादल अपने शहर वाले बेटे को जरा समझाओ इतना पढ़ा लिख
कैलेण्डर इतराता है,और तारीख़ बदलता जाता है,पर एक तारीख़ ऐसी आती है,जब कैलेण्डर ही बदल जाता है।धूप में तपना पड़ता है,दूर तक चलना पड़ता है,सपनों को साकार करने के लिए , रात रात भर जगना पड़ता है।गिरते गिर
आज मैं आपको अपने बाग़-बगीचे में लगी सतावरी और भृंगराज के बारे में बताती हूँ। हमने इन्हें हमारे बगीचे की बाउंड्री में लगा रखा है। भृंगराज सड़क के किनारे वाली बॉउंड्री पर तो सतावरी सड़क से बिल्डिंग के
पहाड़ों पर छाई है हरियाली,जैसे गोरी खड़ी हो हरे दुपट्टे वाली।आसमान में छाए काले बादल,जैसे गोरी के आँखों में काजल।गिरती बूँदें आवाज़ करें है छम छम,जैसे बाजे गोरी के पावों की पायल।ऊँचाई से गिरता झरना बह रह
नववर्ष सा उल्लास हो उस आहट का अहसास हो, प्रकृति का आह्वान हो अस्तित्व का विकास हो, पृकंपन का प्रवात हो उर में तुम्हारा वास हो, सामर्थ्य प्रभाव उदित हो नव उमंग भर तरंगित हो, उषा लालिमा लोचन