मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसे जीवित रहने के लिए समाज की आवश्यकता पड़ती है। किसी भी व्यक्ति का परिवार इस सामाजिक व्यवस्था का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण और प्रारम्भिक चरण है। जिस घर में व्यक्ति जन्म लेता है। वहीं के वातावरण का असर उक्त व्यक्ति के मन मस्तिष्क सदैव के लिए छप जाता है जिन स्मृतियों को मिटा पाना फिर असम्भव प्रतीत होता है। पशुओं और मानवों में यही बहुत बड़ा अन्तर है कि अधिकतर पशुओं के बच्चे जन्म लेने के साथ ही आत्मनिर्भर हो जाते हैं, लेकिन इसके विपरित मनुष्य पैदा होने पर एकदम असहाय होता है जिसे कुछ वर्षों तक लालन-पालन और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। इसलिए मनुष्य को परिवार अर्थात् सर्वप्रथम माता-पिता की सुरक्षा की अत्यन्त आवश्यकता पड़ती है क्योंकि जन्म देने वाले माता-पिता ही अपनी संतान से अत्यन्त प्रेमपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर पाते हैं।
जैसा कि विद्वानों का कहना है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। इसलिए मानव के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए परिवार अर्थात माता-पिता के लालन-पालन और सुरक्षा की मनुष्य को अत्यन्त आवश्यकता होती है। बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य में रिश्तों के लेकर जबरदस्त लगाव होता है और सामाजिक होता है। जिसके कारण वह अन्य अपने जैसे लोगों के साथ लगाव की भावना स्थापित कर पाता है। मनुष्य में भाषा के विकास के उपरान्त वह अपने परिवार के अलावा अन्य जातियों के लोगों से सम्पर्क बनाने में भी सफल हो सका। जो उसे अन्य जीवों से ऊपर उठाती है और उसका अन्य सभी जीवों पर वर्चस्व स्थापित करती है।
यदि देखा जाये तो मनुष्य की सामाजिकता का इस बात से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह बिना किसी अन्य व्यक्ति के सम्पर्क के बिना अधिक दिन तक सही मानसिक स्थिति में नहीं रह सकता। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण जेल है। वास्तव में किसी अपराधी को सजा के रूप में जेल में बंद कर दिया जाता है। जिसके कारण वह बाहरी समाज से और अपने परिवार से कट जाता है। जिनके साथ सारी उम्र रहने के बाद उनसे एकाएक अलग हो जाना किसी व्यक्ति के लिए मानसिक रूप से किसी सजा से कम नहीं है। जबकि जेल में भी व्यक्ति को पूरी तरह से समाज से अलग नहीं किया जाता। उसके साथ बात करने और साथ रहने वाले अन्य कैदी भी होते हैं, अब भले ही वह बात और है कि अधिकतर आपराधिक प्रवृत्ति के कैदी अन्य कमजोर कैदियों के साथ गाली गलौच और मारपीट आदि करते हैं लेकिन वह सब समाज से अलग हो जाने से कुछ कम भयानक है। जब किसी व्यक्ति को पूर्णतः सभी व्यक्तियों से अलग कर अकेला कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया जाये। तब वाकई वह व्यक्ति समझ सकता है कि समाज और परिवार व्यक्ति के लिए कितना आवश्यक है।
अकेलापन भले ही कुछ समय के लिए किसी को मानसिक सुकून दे सकती हो लेकिन लंबे समय के लिए यह किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के मस्तिष्क को अवसाद में ले जाने के लिए काफी है। जिससे वह अनेकों प्रकार की मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो सकता है। अक्सर लंबे समय तक अकेले रहने वाले व्यक्ति या बचपन में समाज द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर अकेलेपन के कारण ऐसे व्यक्ति मनोरोगी हो जाते हैं या अपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाते हैं। इसलिए मनुष्य को प्रकृति के अनुसार चलना चाहिए। सामाजिक जीव होने के कारण उसे अन्य लोगों के सम्पर्क में रहना चाहिए और ऐसे लोगों का साथ रखना चाहिए जो सकारात्मकता से परिपूर्ण हों। इसी से मानव सही मायनों में मानसिक स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है।