*संसार में आने के बाद मनुष्य अनेकों प्रकार के संबंधों में बंध जाता है ! पारिवारिक संबंध , सामाजिक संबंध , बन्धु - बांधव एवं अनेक प्रकार के रिश्ते नाते उसे जीवन भर बांधे रखते हैं ! यह सभी संबंध मनुष्य के जीवन में अपना महत्व रखते हैं , परंतु इन सभी संबंधों के ऊपर उठकर एक अनोखा संबंध होता है जिसे मित्रता का संबंध है ! मित्रता एक ऐसा बंधन हैं , एक ऐसी पूंजी है जो कई अमूल्य खजानों से भी बढ़कर है ! यह वह अनमोल गहना है जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता ! कुछ लोग कहते हैं कि शत्रुता एवं मित्रता बराबर वालों में होती है परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि इतिहास को देखता हूँ तो यह तर्क असत्य ही भासित होता है ! भगवान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता जगत्प्रसिद्ध है ! सुदामा तो यह समझ रहे थे कि पता नहीं द्वारिकाधीश हमको पहचानेंगे या नहीं परंतु द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्रतारूपी गहने को नष्ट नहीं होने दिया था उस अक्षुण्ण पूंजी का ही प्रभाव था कि दीन हीन सुदामा का नाम सुनते ही त्रैलोक्याधिपति नंगे पैरों दौड़ पड़े और सुदामा को हृदय से लगा लिया ! सुदामा की दीनदशा देखकर भगवान स्वयं रोने लगे क्योंकि :- "जे न मित्र दुख होंहिं दुखारी ! तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी !! जो अपने मित्र के दुख में दुखी नहीं होता उसको देखने मात्र से महापाप लगता है ! मित्रता रूपी खजाने की रक्षा वैसे ही करनी चाहिए जैसे एक नाग अपनी मणि की रक्षा करता है , क्योंकि यह वह पूंजी है जो एक बार यदि नष्ट हो जाती है तो दुबारा संचित कर पाना कठिन ही नहीं अपितु कभी कभी असम्भव भी हो जाता है !*
*आज इतिहास में मित्रों की कथायें पढ़ने के बाद यदि समाज पर दृष्टिपात किया जाता है तो सब कुछ उलटा पुलटा ही दिखाई पड़ता है ! आज अधिकतर लोग मित्रता तो करते हैं परंतु उनकी इस मित्रता में कहीं न कहीं उनका स्वार्थ स्पष्ट दिखाई पड़ता है ! जब इन तथाकथित मित्रों का स्वार्थ पूर्ण हो जाता है इनकी मित्रता का अध्याय भी पूर्ण हो जाता है अर्थात् मित्रता ही समाप्त हो जाती है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि एक रथवान के पुत्र को हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन ने अपना मित्र कहकर उसको अंगदेश का राजा बना दिया तो अंगराज कर्ण ने उस मित्रता की पूंजी की रक्षा अपने प्राणों का बलिदान देकर किया ! आज मित्रता तो अनेक लोगों से होती है परंतु सुख में जितने मित्र दिखाई पड़ते हैं दुख आने पर उनकी गिनती एकाध में ही दिखाई पड़ती है ! जो दुख में भी अपने मित्र के साथ डटकर खड़े रहते हुए उसको धैर्य एवं साहस प्रदान करता रहे समझ लो कि वही मित्रता रूपी गहने का जौहरी है ! मित्रता एक ऐसा गहना है जिसको धारण करने पर शोभा बढ़ जाती है और जिसने इस गहने को नष्ट कर दिया वह कान्तिहीन हो जाता है ! भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से मित्रता करके उसे उसका राज्य , धन , स्त्री सबकुछ वापस दिलाया तो सुग्रीव ने भी मित्रतारूपी गहने को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए समस्त वानरजाति को श्पी राम की सेवा में समर्पित कर दिया ! मित्रता की अनेक कथायें हमको पढ़ने व सुनने को मिलती हैं , परंतु आज अधिकतर लोग इसे एक मनोरंजनात्मक कहानी पढ़कर भूल जाते हैं ! जबकि हमें इन आदर्श कथाओं को जीवन में धारण करने का प्रयास करना चाहिए !*
*वैसे तो सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेकों मित्र मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं परंतु प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक ऐसा मित्र भी होता जो अच्छा एवं सच्चा होता है और जिसने मित्रता रूपी गहने को संजोकर रखा होता है ! प्रत्येक मनुष्य को अपने मित्रता रूपी गहने को सहेजकर ही रखना चाहिए !*