एक ही कॉलोनी में अपने-अपने परिवारों के दायरे में सीमित रहने वाले दो युवा बाहर किसी अनजान शहर में दोस्तों की तरह मिलते हैं और कहा है किसी शायर ने-‘‘एक मंजिल राही दो फिर प्यार न कैसे हो ?‘‘ इसी एक मंजिल की ओर दोनों के कदम उन्हें ले चलते हैं, धन-दौलत के
प्रणाम! मैं कोई लेखिका नहीं हूं। लेकिन जब से मेरे जीवन में कृष्ण नाम आया हैं, तब से में स्वत हीं कवयित्री हों गई हूं। इस संग्रह की हर में, हमारे मन की गहराई का एक भाग हैं। जिसमें श्रीकृष्ण विराजमान हैं, जिसमें बस मनमोहन का नाम हैं। यह हमारा पहला काव्
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श्रीराम को 14 वर्ष का ही वनवास क्यूँ हुआ था ? शिवलिंग वास्तव में क्या है ? सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई? धर्म क्या है ? हमारे धर्म के वैज्ञानिक रहस्य क्या हैं? इसे अनेकों प्रश्नों के उत्तर तथा श्रीराम जी की संक्षिप्त जीवनी आपके समक्ष उपस्थित है
इस किताब मे दैनिक लेखन प्रतियोगिता में जो विषय दिये जाएंगे उन पर कुछ लिखने की मेरी एक कोशिश।
मेरे द्वारा रचित पुस्तक आखरी इच्छा में मैंने एक विधवा मां की आखरी इच्छा की कहानी लिखी है। जो काल्पनिक रचना है। जिसमें एक मां की आखरी इच्छा थी कि वह डॉ बने। लेकिन समाज में चल रही नैतिक बुराईयों की वजह से उसके घर वालों ने उसकी शादी कर दी। कहानी एक वि
“बढ़ता जाता एक और कदम” एक और कदम एक कविता संग्रह है जिसमें जिसे चार भागो मे विभाजित किया गया है प्रेरणादायक अनुभूति सामाजिक और बेतरतीब इस किताब को पढ़ने वालों को अलग-अलग भावनाओं से गुजरने का मौका मिलेगा ऐसी कवि की आशा और प्रयास भी। कुछ कवितायें जैसे
कुहरा किस्सा है खूबसूरत किरदारों का, किरदारों के जीवन के उतार-चढ़ाव का जब आँखों के आगे सिर्फ कुहरा नज़र आता है और जीवन संघर्ष बन जाता है | तो कुहरा कहानी है किरदारों के संघर्षों का, संघर्षों से निजात पाने वाले प्रयासों का और अनावरत प्रयासों से प्राप्त
फुर्सत के कुछ पलों में अपने आप को व्यक्त करने का माध्यम है यह। जिंदगी के कुछ अनदेखे अनकहे शब्दों को अभिव्यक्त करने का माध्यम है यह। जब आप बहुत खुश होते हैं या बहुत दुखी होते हैं तो अपने आप से बात करने का माध्यम है यह। समाज में हो रही उथल-पुथल का आपके
मैने बीतिया वेला नाम की किताब लिखी है, जिसमें मैंने बीते समय के दृश्यों को बियान करने की कोशिश की है। जिसमे मैंने हमारे बीते समय में हमारे बजुर्गों की कुछ ऐसी झलकियों को पेश करने की कोशिश की है जिसकी आज के समय में अहमियत कम होती जा रही है। मेरा इस कि
मैंने देखा है कि अनेक बार मंगल व शनि के बारे में अनेक प्रकार से, अनेक कारणों से जनमानस को डराया जाता रहा है। मैं प्रायः लोगों को इन दोनों ग्रहों से भयभीत होते देखती आई हूं जबकि ये दोनों ग्रह इतने डरावने व नुकसानकारी भी नहीं कि जितने बताए जाते हैं। इस
जिंदगी बहुत मुश्किल है और ये बात हमें कदम-कदम पर पता चलती रहती है। कभी परिवार की जरूरतों को लेकर तो कभी अपने आकांक्षाओं को पूरा करने की चाहत में हमें कई मुश्किलों से गुज़रना पड़ता है। यह मेरी कहानी अंतिम सत्य में एक ऐसे कड़वे सच को दर्शाया गया है,
यह पुस्तक मेरी भूली-बिसरी यादों के पिटारे के रूप में प्रस्तुत है। मैंने इस पुस्तक में अपने दैनन्दिनी जीवन के हर पहलू के जिए हुए खट्टे-मीठे पलों को उसी रूप में पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। मेरी इस पुस्तक के लगभग सभी संस्मरण देश-प्रदेश के विभ
इश्क, मोहब्बत, प्यार, लव, प्रेम, चाहत और न जाने कितने ही नाम हैं इस एहसास के... एहसास वो जिसका बखान करने वाले शायर बन गए... एहसास वो जिसे महसूस करके कई आशिक दीवाने बन गए... इसी एहसास की लहरों में हिचकोले लगाती हुई ख्वाहिशों की है य
नाम से यह उपन्यास है, तो स्वाभाविक ही है कि चरित्र विशेष होगा। कहते है न कि युवा अवस्था जीवन का वह पड़ाव है, जहां पहुंचने के बाद मन की इच्छा पंख लगा कर उड़ने की होती है।....वह भले-बुरे के भेद को न तो समझना चाहता है और न ही समझ पाता है। फिर तो उसका जो ह
श्रद्धा एक साधारण परिवार की लड़की है । उसका हमेशा से यह इच्छा थी कि उसे भी उसके घर वाले प्यार करे । जब वो देखती की लोग अपने बच्चों से प्यार से बात कर रहे है , उनके लिए अच्छी - अच्छी चींजे लाये है , तो वो ये देखकर उदास हो जाती थी , और सोचने लगती थी क
कुछ मनमौजी खयालात पर बनी ये मेरी छोटीसी किताब है, उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आयेगी मेरे द्वारा लिखीत कविताए जो हर एक के भावनाओं को रुबरु करायेगी।
इस एक बालक विक्रम जो अपने घर की तंग हालत में अपने जीवन को बहुत ही कठिन दौर में व्यतीत करता है लेकिन उसके बावजूद भी वह अपनी मेहनत और कर्मों से कभी भी मुंह नहीं मोडता है। वह काफी प्यास करने के बाद जीवन में कैसे सफल होता है।
काव्य कुंज मेरी स्वरचित कविताओं का संकलन है जिसमें जीवन के विभिन्न स्वरूपों को उजागर करने की कोशिश की है।
सही और गलत सोच का फेर ही तो है जो दिल को सही लगे वही सही होता है क्योंकि उसे करने से पहले ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ता पर जहां सोच गहरी हो जाये वहां कुछ सही तो क्या कुछ होने के चांस भी खत्म हो जाते हैं क्योंकि वक्त किसी के लिये नहीं रूकता और वक्