सन 1984 में सुंधरा राजे सिंधिया ने मध्यप्रदेश के भिड़ लोकसभा क्षेत्र से अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा जरूर था लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह ने उन्हें 88 हजार वोट से हरा दिया था।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों पर 25 नवंबर को वोटिंग होगी और मतदान का परिणाम 3 दिसंबर को आएगा। भाजपा कांग्रेस समेत अन्य दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी है। भाजपा ने वसुंधरा राजे और कांग्रेस ने सीएम अशोक गहलोत पर अपना दांव खेला है। किस्सा कुर्सी का सीरीज में आज हम बात करेंगे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री की, जो पहले अटलबिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में विदेश राज्यमंत्री बनीं और फिर डायरेक्ट पहुंच गई मुख्यमंत्री की कुर्सी पर...
वसुंधरा राजे सिंधिया की कहानी
1 राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। 8 मार्च 1953 को मुंबई में जन्मीं वसुंधरा राजे सिंधिया का संबंध राजघराने से रहा है। अगर इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा को बढ़त मिली तो वह राज्य की नई मुखिया बन सकती हैं।
2 वसुंधरा राजे ग्वालियर के शासक जीवाजी राव सिंधिया और उनकी पत्नी राजमाता विजया राजे सिंधिया की चौथी संतान है। वसुंधरा ने प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की और उसके बाद वसुंधरा ने सोफिया कॉलेज (मुंबई यूनिवर्सिटी) से इकॉनॉमिक्स और साइंस आनर्स से ग्रेजुएशन पूरा किया।
3 ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद 17 नवंबर 1972 में वसुंधरा राजे की शादी धौलपुर राजघराने के महाराजा हेमंत सिंह के साथ हुई। वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत सिंह राजस्थान के झालावाड़ सीट से लोकसभा सदस्य है।
4 वसुंधरा राजे सिंधिया देश की शक्तिशली महिलाओं में से एक हैं। वसुंधरा राजे मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया की बहन हैं। वहीं उनकी बहन यशोधरा राजे सिंधिया मध्य प्रदेश सरकार में उद्योग मंत्री रह चुकीं हैं।
5 1984 में सुंधरा राजे सिंधिया ने मध्यप्रदेश के भिड़ लोकसभा क्षेत्र से अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा जरूर था, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह ने उन्हें 88 हज़ार वोट से हरा दिया था। क्योंकि उस वक्त पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से काग्रेस के पक्ष मे सहानुभूति लहर चल रही थी।
6 वसुन्धरा राजे को 1984 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया और उन्हें भाजपा युवा मोर्चा राजस्थान की उपाध्यक्ष बनाया गया। सन 1985-87 के बीच राजे उपाध्यक्ष रहीं और फिर 1987 में लोगों में वसुंधरा राजे के प्रति बढ़ती चाहत को देखते हुए पार्टी ने उन्हें राजस्थान प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष बना दिया।
वाजपेयी मंत्रिमंडल में मिला बड़ा पद
भाजपा ने 1999 का संसदीय चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के आयोजक के रूप में लड़ा। जिसमें भाजपा ने गठबंधन की 294 सीटों में से 182 सीटें जीतीं। गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री चुने गए। राजस्थान प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष बनने के बाद उनकी कार्यक्षमता और पार्टी के प्रति उनकी वफादारी को देखते हुए 1998-1999 में अटलबिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में वसुंधरा राजे को विदेश राज्यमंत्री बनाया गया। यहीं से उनके करियर की एक नई शुरुआत हुई।
सुराज संकल्प यात्रा का मिला फायदा
सन 1999 में वसुंधरा राजे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया और भैरोंसिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने के बाद वह राजस्थान भाजपा की अध्यक्ष बन गई। वर्ष 2013 का समय था और विधानसभा चुनाव को देखते हुए वसुंधरा राजे ने गहलोत सरकार को सता से हटाने के लिए सुराज संकल्प यात्रा निकाली। इस यात्रा का वसुंधरा राजे को काफी फायदा मिला और वह डायरेक्ट राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने के साथ राज्य की दूसरी मुख्यमंत्री बन गईं।
हाथ से निकल गया राजस्थान
जैसे-जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते गए भाजपा की किस्मत चमकने लगी। जिसका मुख्य कारण कांग्रेस पार्टी के शासन के प्रति बढ़ता असंतोष था। गुजरात में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को भाजपा के चुनावी अभियान का नेतृत्व दिया गया और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिली। 26 मई 2014 को मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। जैसे ही राजस्थान विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आया, पीएम मोदी ने वसुंधरा राजे पर भरोसा जताया। पांच साल सत्ता में रहते हुए वसुंधरा राजे ने राजस्थान में ग्रास रूट लेवल पर काम किया, लेकिन पार्टी में ही उनके खिलाफ बगावती सुर उठने लगे। आर्थिक विकास के वादे अधूरे रह गए। वह वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के रथ पर सवार हुई और अमित शाह ने राजसमन्द जिले से वंसुधरा राजे के चुनावी रथ 'राजस्थान गौरव यात्रा' को रवाना किया।
भाजपा का वसुंधरा पर दांव
इस बार किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकीं। हालांकि राजे ने विधानसभा में अपनी सीट बरकरार रखी और अगले पांच वर्षों तक विपक्ष की नेता रहीं। 2018 में पार्टी नवंबर और दिसंबर में हुए सभी पांच राज्यों के चुनाव हार गई, जिसमें उसके गढ़ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल थे। एक बार फिर भाजपा ने वसुंधरा राजे को टिकट देकर यह संकेत दे दिया है कि अगर वह राज्य में पार्टी को जीत दिलाती हैं तो वह राजस्थान की कमान संभाल सकती हैं।