*सकल सृष्टि में परमात्मा द्वारा बनाई गई चौरासी लाख योनि भ्रमण करती हैं | इन सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ बन करके मानव योनि आयी | इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य का एक लक्ष्य होता है | यह अलग बात है कि वह अपने लक्ष्य को पूरा कर सके या ना कर सके परंतु मनुष्य के जन्म लेते ही उसके साथ उसके जीवन का उद्देश्य जुड़ जाता है | विचार कीजिए यदि मानव जीवन का कोई लक्ष्य ना होता तो मनुष्य में और अन्य जीवो में कोई बड़ा अंतर न रह जाता | जहां अन्य जीवो के उद्देश्य सिर्फ उदर पूर्ति एवं प्रजनन करना होता है वहीं मनुष्य जीवन देकर के परमात्मा ने जीव को चिंतन की , भावनाओं की एवं दृष्टिकोण की क्षमता प्रदान की है | मनुष्य को यह विशेषताएं देने के पीछे उस परमशक्ति का यह उद्देश्य था कि मनुष्य हमारे युवराज के रूप में सृष्टि में कार्य करेगा एवं मानव जीवन के परम लक्ष्य मानवता को प्राप्त कर सकेगा , क्योंकि मानव जीवन का उद्देश्य मानवता के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता है | अनेक
धर्म - सम्प्रदाय को मानने वाले मनुष्य के लिए मानवता सबसे बड़ा धर्म है | मानवता की परिभाषा वैसे तो बहुत वृहद है परंतु यदि थोड़े शब्दों में कहा जाए तो मानवता का प्रथम चरण होता है किसी दूसरे की पीड़ा को देखकर स्वयं भी पीड़ा का अनुभव करना | ऐसा अनुभव करने वाला मनुष्य ही मानवतावादी कहा जा सकता है | यही मानवता मनुष्य को अन्य जीवो से पृथक करती है और मानव जीवन के परम उद्देश्य से परिचित कराती है |* *आज मनुष्य ने विकास तो बहुत कर लिया है ! जीवन के हर क्षेत्र में मनुष्य ने सफलता अर्जित की है यहां तक मनुष्य समुद्र की गहराइयों को तो छाना ही है साथ ही अंतरिक्ष में भी चंद्रमा एवं मंगल ग्रह की
यात्रा भी कर चुका है | मानव ने अपनी शक्ति का परिचय जीवन के हर क्षेत्र में दिया है , परंतु दुख इस बात का है कि भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने वाला मनुष्य आज मनुष्य जीवन के प्रमुख उद्देश्य से भटक रहा है | आज मानव में मानवता का दर्शन बहुत कम हो रहा है | जहां मनुष्य का परम उद्देश्य मानवता कही गयी है वही मनुष्य आज अपनी मानवता को खोता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि यह कहूँ कि आज मनुष्य एवं जानवरों में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी | आज
समाज में हो रहे अनाचार पर जिस प्रकार मनुष्य आंखें फेर कर के बिना विरोध के चल देता है उससे यह प्रतीत होता है कि आज मानवता नहीं रह गई है | कहीं किसी चौराहे पर यदि चार लोग किसी को पीड़ित कर रहे हैं तो मनुष्य वहां से मुंह घुमा कर चल देता है यह सोच कर कि कि हम से क्या मतलब है | क्या यही मानवता है ?? क्या दूसरों की पीड़ा को देख कर के स्वयं से कोई मतलब ना होने का बहाना बनाकर मनुष्य का वहां से हट जाना मानवता कही जा सकती है ?? शायद परमात्मा ने भी न सोचा होगा कि हमारी बनाई हुई अनुपम कृति मनुष्य इस प्रकार मानवता से विमुख हो जाएगी | आज मनुष्य पशुओं की तरह सिर्फ पेट भरने के लिए कार्य कर रहा है | अनेकों मनुष्य तो इस प्रकार हैं जिनको समाज एवं
देश से कोई मतलब ही नहीं है | क्या मानव जीवन का यही लक्ष्य था ?? शायद नहीं | मानव जीवन का लक्ष्य है अपने जीवन को सर्वोच्चता प्राप्त कराना और यह सर्वोच्चता मानवतावादी बनकर ही प्राप्त हो सकती है |* *मनुष्य किसी भी धर्म का हो परंतु उसका प्रथम एवं सबसे बड़ा धर्म मानवधर्म होता है | इस धर्म का पालन किए बिना किसी भी धर्म में की गई आराधना उस परम परमात्मा को स्वीकार नहीं हो सकती |*