*परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को अनमोल उपहार के रूप में यह शरीर प्रदान किया है | इस शरीर के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह शरीर चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है | जिस प्रकार कहीं की
यात्रा करने के लिए वाहन का ठीक होना आवश्यक होता है उसी प्रकार जीवन रूपी यात्रा पूरी करने के लिए इस शरीर रूपी वाहन को स्वस्थ एवं ठीक रखना परम आवश्यक है | शरीर को ठीक रखने का एक ही माध्यम है सुपाच्य भोजन एवं समय-समय पर व्यायाम | यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो मनुष्य कोई भी कार्य सुचारु ढंग से नहीं कर सकता है | इसी को ध्यान में रखते हुए प्राचीन काल से ही हमारे महापुरुषों / पूर्वजों जगह-जगह मनुष्य के शारीरिक
स्वास्थ्य के लिए तरह - तरह के
खेल एवं व्यायाम की व्यवस्था बनायी थी | इसके साथ ही मनुष्य सुंदर आहार , सुपाच्य भोजन लेकरके अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखता था | सामाजिक कार्य , धार्मिक कार्य या संसार का कोई भी कार्य हो उसे संपन्न करने के लिए शरीर का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है | हमारे
धर्म ग्रंथों में लिखा गया है :- "शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्" यदि शरीर स्वस्थ रहेगा जब पूजा पाठ की तैयारी हो पाना संभव है , इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के प्रमुख अवयव भोजन पर ध्यान देना परम आवश्यक है | हमारे पूर्वज भोजन व्यवस्था पर ध्यान देते हुए अपने शरीर को स्वस्थ रखते हुए कई वर्षों तक जीवित रहे हैं |* *आज जिधर देखो उधर मनुष्य शारीरिक रोग से पीड़ित दिखता है , इसका मुख्य कारण है आज के मनुष्य का भोजन | मनुष्य को भोजन सदैव संतुलित एवं सुपाच्य ही करना चाहिए | आज व्यायाम के कोई साधन दिखायी नहीं पड़ते हैं | गांव में अखाड़े , कबड्डी एवं शरीर को स्वस्थ रखने के अन्य साधन भी समाप्त होते जा रहे हैं | यही कारण है कि मनुष्य का स्वास्थ्य गिरता चला जा रहा है | भोजन की बात कर ली जाए तो आज के युग में मनुष्य इतना व्यस्त है उसको भोजन करने का भी समय नहीं है | कभी चलते - चलते तो कभी खड़े - खड़े भोजन करके आज का मनुष्य किसी तरह पेट भर कर अपना काम कर रहा है | जबकि मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक जान पाया हूँ उसके अनुसार भोजन सदैव आराम से बैठकर एवं खूब चबाकर करना चाहिए , क्योंकि ऐसा करने से भोजन सुपाच्य हो जाता है एवं मनुष्य को कोई रोग नहीं पकड़ता है | आज मनुष्य का भोजन इस प्रकार का हो गया है कि वह मनुष्य को रोगी बना रहा है | भक्ष - अभक्ष खाता हुआ मनुष्य अपने शरीर को दिन प्रतिदिन बीमार कर रहा है , और उसका सारा दोष परमात्मा को देता है | विचार कीजिए यदि किसी यात्रा में आपका वाहन ठीक नहीं है तो आप की यात्रा कैसे पूरी होगी ! उसी प्रकार यदि शरीर स्वस्थ नहीं है तो जीवन रूपी यात्रा बीच में ही रुक जाती है अर्थात मनुष्य असमय काल के गाल में समा रहा है | जबकि इसके लिए मनुष्य को बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करना है , मात्र इतना ही करना है कि अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए समय-समय पर व्यायाम एवं सुपाच्य भोजन की ओर ध्यान देता रहे | परंतु आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य नहीं कर पा रहा है |* *अनेक योनियों में भ्रमण करके यह शरीर बहुत मुश्किल से प्राप्त हुआ है , इसको स्वस्थ बनाए रखते हुए आप संसार के सभी कार्य सुचारु ढंग से कर सकते हैं | अतः सुपाच्य भोजन एवं शारीरिक श्रम करते रहना चाहिए |*