सुरंग में फंसी जिंदगी बचाने के लिए खोज बचाव टीम निरंतर अभियान में जुटी हुई है। श्रमिकों तक सकुशल निकालने और उनतक प्राणवायु रसद व अन्य सामग्री पहुंचाने के कई प्रयास हुए हैं। इन्हीं प्रयासों के चलते श्रमिक सकुशल रहे हैं। सुरंग के अंदर जिंदगी को सांस पहुंचाने का पहला प्रयास 12 नवंबर की रात्रि को हुआ। इसी दिन सुबह सुरंग में भूस्खलन हुआ था।
सिलक्यारा में आमजन श्रमिक और सुरक्षा में तैनात कर्मी।
सिलक्यारा सुरंग में 13 दिनों से कैद रहने वाले 41 श्रमिकों को चार इंच, छह इंच और 32 इंच के पाइप लाइफ लाइन बनी है, जिससे आस और उम्मीदों को सांस मिली है। सुरंग में फंसी जिंदगी बचाने के लिए खोज बचाव टीम निरंतर अभियान में जुटी हुई है। श्रमिकों तक सकुशल निकालने और उनतक प्राणवायु, रसद व अन्य सामग्री पहुंचाने के कई प्रयास हुए हैं। इन्हीं प्रयासों के चलते श्रमिक सकुशल रहे हैं। सुरंग के अंदर जिंदगी को सांस पहुंचाने का पहला प्रयास 12 नवंबर की रात्रि को हुआ। इसी दिन सुबह सुरंग में भूस्खलन हुआ था।
सुरंग में फंसे फोरमैन गब्बर सिंह नेगी अपने साथियों को बचाने के लिए सुरंग के अंदर से पानी निकासी का पंप चलाया। इस संकेत से सुरंग के बाहर खड़ी रेस्क्यू टीम को पता चला कि सुरंग के अंदर मौजूद श्रमिक जिंदा है। इस चार इंच व्यास के जरिए श्रमिकों ने बाहर आवाज लगाने का प्रयास किया। पाइप पर हल्की आवाज आई तो यही पाइप खोज बचाव टीम संवाद का माध्यम बनी। इसी पाइप के जरिये की सुरंग के अंदर 41 श्रमिकों के फंसे होने की संख्या भी सामने आई। खोज बचाओ अभियान टीम ने लाइफ लाइन बने इसी पाइप से ऑक्सीज और रसद पहुंचाई।
13 नवंबर से 16 नवंबर तक क्या-क्या हुआ?
13 नवंबर को श्रमिकों को निकालने के लिए औगर ड्रिलिंग मशीन के लिए अस्थायी प्लेटफार्म बनाना शुरू हुआ तो उम्मीद बढ़ी।
14 नवंबर को देहरादून से औगर ड्रिलिंग मशीन सिलक्यारा पहुंची। ड्रिलिंग मशीन को स्थापित करने के लिए 21 मीटर लंबा प्लेटाफार्म तैयार किया गया। इस मशीन में तकनीकी खराबी आई।
15 नवंबर को नई दिल्ली से वायु सेना के तीन विमानों ने अमेरिकन औगर ड्रिलिंग मशीन सिलक्यारा पहुंचाई गई तो उम्मीद और बढ़ी। श्रमिकों की जान बचाने के लिए विभिन्न देशों के विशेषज्ञों से भी संपर्क किया गया।
16 नवंबर का दिन सबसे खास रहा जब अमेरिकन औगर मशीन ने काम शुरू किया। सिलक्यारा की तरफ से 18 मीटर निकास सुरंग तैयार किया गया। इसके बाद अर्चन पर अड़चन आती गई। परंतु खोज बचाव टीम भी इन अड़चनों से पा पाता रहा। जीवन बचाने के लिए सबसे बड़ी खबर यह रही की पीएमओ ने इस अभियान की कमान जब अपने हाथों में ली।
20 नवंबर को श्रमिकों को मिला भोजन
19 नवंबर को पीएमओ की टीम सिलक्यारा पहुंची। फिर जिंदगी को बचाने के अभियान ने गति पकड़ी। अलग-अलग विकल्पों पर भी मंथन हुआ, लेकिन सुरंग के अंदर मलबे में औगर मशीन से की जाने वाली ड्रिल को ही प्राथमिकता दी गई।
20 नवंबर को श्रमिकों तक सॉलि़ड फूड और अन्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए 6 इंच व्यास का 57 मीटर पाइप पहुंचाया गया। तब जाकर नौ दिन बाद 41 श्रमिकों ने भोजन चखा।
यह पाइप दूसरी लाइप लाइन बनी, जिससे श्रमिकों को नियमित भोजन उपलब्ध हुआ, जबकि 16 नवंबर से लेकर अलग-अलग बाधाओं को पार करते हुए औगर मशीन ने शुक्रवार की रात को तीसरी लाइफ लाइन बनाकर सभी की उस आस को सांस दी, जो पिछले 13 दिनों सुरंग में कैद रहे, जो फंसे श्रमिकों को बचाने में जुटे रहे, वे सभी स्वजन जो अपनों की सकुशल वापसी के लिए चिंतित और बेताब दिखे।