जलाकर ढेर दीपों को
खूब प्रकाश कर ले हम
मनाकर ढेर खुशहाली
खूब उल्लास कर ले हम
जलाकर प्रेम के दीपक
जग गुलजार कर दें हम
मिठाई न खिलाकर
इक मुस्कान दे दें हम
उड़ाए रंग ढेरों हम
गुलाबी लाल पीले हम
खेलें प्रीत की होली
मिटा दें शिकायत हम
उडा कर रंग मोहब्बत का
प्रीत बौछार कर दें हम
जमानें में मोहब्बत की बौछार कर दें हम
कसम खायें न फूकेगें
बनावटी कुंभ रावण हम
मिटाएगें दिलों के पाप
बनेंगे पावन निश्चछल हम
मिटाकर द्वेष दुनियां के
ये ऐलान कर दें हम
त्योहारों से बडी है
मानवता जमानें में
उसे ही अटूट शक्ति से
इक त्योहार कर दें हम
जलाकर प्रेम के दीपक
जग गुलजार कर दें हम ।
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।