कुछ चेतो मानव तुम जग के
नही तो बहुत पछताओगे,
करते रहे यूं दूषित धरती को दूषित तो,
तुम हरियाली कहाँ से पाओगे?
करते रहे जो वायु प्रदूषित,
एक पल भी न जी पाओगे,
खुली हवा में जो श्वास हो लेते,
एक श्वास को भी तरस जाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।
जल को जो किया तुमने प्रदूषित,
धरती पर सब बंजर पाओगे,
बिन जल की बूंदों के तुम,
तनिक भी जी न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।
रोको ध्वनि प्रदूषण को तुम,
वरना मानसिक रोगी बन जाओगे,
इतराते हो जो अपनी बुद्धिमता पर,
जीवन में तनिक रस न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे ।
रोको जनप्रदूषण जल्दी ही,
वरना बेघर तुम हो जाओगे,
रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या से,
तुम फिर कभी पार न पाओगे।
कुछ चेतो मानव तुम जग के,
नही तो बहुत पछताओगे।