जीवन का आधा पतन – व्यसन
धरती पर अगर चंदन का पेड़ उगाना हो तो वर्षों लग जाते हैं और बेशर्म का पौधा उगाने में कुछ भी श्रम नहीं लगता। उसे तो जहाँ फेंक दो, अपने आप उग आता है, इसलिए उसका नाम ही बेशर्म है। अच्छाइयों को आरोपित करना होता है, बुराइयाँ स्वतः प्रकट हो जाती हैं और न केवल प्रकट होती हैं अपितु बहुत तेजी से पनपने लगती हैं। और एक बार मनुष्य किसी बुराई से जकड़ जाए तो उस से मुक्त होना उसके लिए बड़ा मुश्किल सा हो जाता है और वह उसके चित्त और चेतना को खोखला कर देती है। कहते हैं, जिस धरा पर बेशर्म या गाजर घास उग जाती हैं, वहाँ उसके रहते कोई अच्छी फसल नहीं उग पाती। चित्त की भूमि में यदि हम अच्छे बीजों का अंकुरण करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहली आवश्यकता उसे साफ करने की है। जो बुराइयों की गाजर घास हमारे चित्त की भूमि में उग आये हैं, जो बेशर्म उग आये हैं, आवश्यकता उसे उखाड़ कर के अपनी मनोभूमि को स्वच्छ बनाने की है।