जूझ रहा है समस्त संसार,
हो प्रकृति या मानव जाति,
सब पर है इसका घोर प्रहार।
बढ़ रहा है बीमारियों का प्रकोप,
जीवन हो गया है दुश्वार,
ख़त्म हो रही हरियाली धरती से,
वातावरण हो गया है बेकार।
कहीं जल की समस्या के कारण,
सूखे और भुखमरी की है मार,
कही वायु प्रदूषण का संकट,
जो कर रहा सबको बीमार।
जनसँख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण ने तो,
छीन लिए है सबके अधिकार,
जिसके कारण ही,
बेरोजगारी ने लिए अपने पैर पसार।
स्वयं ही मानव ने अपने,
दुष्कर्मों से लिया जीवन बिगाड़,
कर लिया स्वयं को पीड़ित,
और कर धरती पर मनावता को बेज़ार।