यह मेरी जीवनी है। एक पत्रकार की कहानी। मैंने इस कहानी को जीया है। मैं ही इस कहानी का नायक हूं। मैंने अपने जीवन के 32 बरस पत्रकारिता को दिए हैं। गुजरे इन बरसों में पत्रकारिता ही मेरा धर्म भी रही और जुनून भी। व्यवसाय भी और कर्तव्य भी। लक्ष्य भी और आत्
जवाहर नवोदय विद्यालय एक समुन्द्र की तरह है इसकी हर एक बुुंद की एक अपनी तुफानी कहानी है तो पेश है नवोदय की एक बुुंद यानी मेरी कहानी | जिसमे आपको मिलेगा हर नवोदयन के सफर का अनुभव और आप जान जायेंगे कि नवोदय क्यो हीरोज़ का स्कुल है| मैने नवोदय मे सब
जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है | जीवन-मृत्यु प्रकृति का शाश्वत सत्य है | जिस तरह बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता, उसीतरह जो दिवंगत हो जाते हैं, कभी नहीं लौटते | मात्र उनकी यादें हमारे मानस पर बरबस आती रहती है | उनकी क्रियाकलापें, उनकी बात
एक मध्यमवर्गीय स्त्री का वर्जनाओं को तोड़कर नई सफ़ल इबारत लिखने की एक कथा । जिसमें समस्त अनुभव उनके स्वयं के हैं । उम्मीद करता हूँ कि मैं कथ्य के साथ बिना किस अतिरिक्त कल्पना के यथार्थ को बरतते हुए न्याय कर पाऊंगा ।
मनुष्य जीवन में कई तरह के संघर्ष करने पर ही जिंदगी को आगे बढ़ाया जा सकता है। जीवन जीने का मतलब जीना नहीं है अपितु उच्च विचार, अच्छे आदर्श परिवार को सही स्तर से भरण-पोषण अध्यात्मिक ज्ञान और मर्यादाओ को बनाए रखकर चलना होता हे। तथा माता- पिता की सेवा ।व
मेरी माँ के बाईस कमरे' कश्मीर के दिल से निकली वह कहानी है, जिसमें इस्लामी उग्रवाद के कारण लाखों कश्मीरी पंडितों के उत्पीडऩ, हत्याओं और पलायन का दर्द छुपा है। यह एक ऐसी आपबीती है, जिसमें एक पूरा समुदाय बेघरबार होकर अपने ही देश में निर्वासितों का जीवन
कनॉट प्लेस से मेरा पहला साक्षात्कार संभवतः 1970 के आसपास हुआ था। मतलब मुझे तब से इसकी यादें हैं। इसके आसपास दशकों तक रहना, पढ़ना, नौकरी करना, घूमना, फ़िल्में देखना वग़ैरह जिंदगी का हिस्सा रहा। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जब तक जिंदगी है, तब तक कनॉट प
हिंदी में प्रसिद्ध और लोकप्रिय कथाकारों की कहानियों के विभिन्न संचयन होते रहे हैं। 'मैं और मेरी कहानियाँ' इस तरह के संचयनों में विशिष्ट प्रयोग है क्योंकि यहाँ हिंदी के शीर्ष कथाकार असग़र वजाहत के परामर्श से युवा पीढ़ी के प्रमुख कथाकार ने अपनी कहानियों
इस किताब के माध्यम से आपको मेरे अनुभवों के बारे में जानने के लिए मिलेगा , जिसको मेने कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया है.
एक माँ-बेटी के रिश्ते की सुंदरता को कैद करते हुए, दिव्या दत्ता ने इस चलती-फिरती संस्मरण में अपनी माँ के जीवन के उत्साह का जश्न मनाया जिसने उन्हें वह महिला बना दिया जो वह आज हैं। दिव्या हमें अपने जीवन की सबसे अंतरंग यादों से रूबरू कराती हैं, जिन्होंने
आओ कुछ यादें हम साझा करें एक साथ, अपने एहसासों और खूबसूरत पल को , बांटे आप के साथ । आओ साथ में मिलकर अपनी यादों , को तरो ताज़ा कर जाएं । इस किताब के माध्यम से , आपको दैनिक प्रतियोगिता का भी , मिलेगा मजेदार शीर्षक । आओ बह चले इस कविता , के
मेरे प्रिय पाठकों, जिसमें दुधमुहे बच्चों से लेकर उम्रदराज मेरे भाई बहन और बेटी बेटे जैसे युवा और स्कूल, कालेज जाने वाले टीन एजर सभी शामिल हैं । चौकिये मत, दुधमुहे इसलिए लिखा है कि बचपन की मधुर थपकियों से ही तो नींव बनती है । इसलिए जिसे बचपन प्यार
ये पुस्तक स्वतंत्रता सेनानी, स्वर्गीय श्री बनारसी दास गोटे वाले की जीवन गाथा है। मै रश्मि गुप्ता इस पुस्तक की लेखिका, सौभाग्यशाली हूँ कि मैं उनकी पुत्री हूँ । जितना करीब से जाना, देखा है, उसे सब के समक्ष रखना चाहती हूँ । मुझे पूर्ण आशा है कि उनक
अपने जीवन के खट्टे मीठे संस्मरणो को कहानियों का रूप देते हुये एक जीवनी /उपन्यास लिखने का प्रयास
साहित्ये ज्ञानराशि: निहिता: भवन्ति। अनुवादमाध्यमेन विविधभाषासु प्रसरिता:। अनुवादमाध्यमेन साहित्येषु निहितज्ञानराशिभि: लाभान्विता: भवन्ति। संस्कृते विपुलसाहित्यरचना उपलब्धा:। अस्यां भाषायां उपलब्धग्रन्थाणां विश्वस्य विविधभाषासु अनुवादा: उपलब्धा:। विवि
यह पुस्तक मेरी भूली-बिसरी यादों के पिटारे के रूप में प्रस्तुत है। मैंने इस पुस्तक में अपने दैनन्दिनी जीवन के हर पहलू के जिए हुए खट्टे-मीठे पलों को उसी रूप में पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। मेरी इस पुस्तक के लगभग सभी संस्मरण देश-प्रदेश के विभ
मेरे जीवन से जुड़े एमएसटी लाइफ के किस्से| सभी किस्से सच्ची घटनाओं पर आधारित है |
हर रोज़ एक नयी राह पर चलने की सोचती हूँ। सबको सकारात्मक करने की सोचती हूँ। इस नयी पीढ़ी में कुछ नहीं हैं। अभी जाग जाओ फिर मौका नहीं देगी जिंदगी। दो पल ही सही सोशल मीडिया और अपनेअहंकार को त्याग के। कुछ पल अपनी जि़दगी -जिद़गी के खुशी से बिता लो
बुआ जी के घर रहते हुए जीवन के विभिन्न रूप दिखे. गांव के लोगों का निश्छल जीवन था तब और आज की तरह वो राजनीती के शिकार नहीं हुए थे.