परमपिता परमात्मा ने इस सृष्टि को बहुत खूबसूरत बनाया है। अथक प्रयत्न करने पर भी हम इसमें कोई भी कमी नहीं निकाल सकते। प्रायः हम सब कहते हैं कि संसार में बुराई का बोलबाला है। वास्तव में बुराई अच्छाई का न होना ही होती है। जिस प्रकार प्रकाश के न होने पर अंधेरा होता है। हर मनुष्य के अन्तस में गुण-अवगुण विद्यमान रहते हैं। जब गुणों की अधिकता होती है तो मनुष्य सन्मार्ग पर चलता है। परन्तु जब गुण पीछे रह जाते हैं और मनुष्य पर किसी भी कारण से अवगुण हावी हो जाते हैं तो वह कुमार्ग की ओर प्रवृत्त होता है। इस प्रकार यह देवासुर संग्राम मनुष्य के अपने भीतर अनवरत चलता रहता है।
एक कहानी वट्सअप पर पढ़ी थी जिसमें लेखक का नाम नहीं था। कुछ सुधारों के साथ उसे साझा कर रही हूँ।
एक दिन कॉलेज में प्रोफेसर ने विद्यर्थियों से पूछा- "इस संसार में जो कुछ भी विद्यमान है उसे भगवान ने ही बनाया है न?"
सभी ने कहा - “हाँ, भगवान ने ही बनाया है।“
प्रोफेसर ने कहा- "इसका मतलब ये हुआ कि बुराई भी भगवान की बनाई चीज़ ही है।"
प्रोफेसर ने इतना कहा तो एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा- "इतनी जल्दी इस निष्कर्ष पर मत पहुँचिए सर।"
प्रोफेसर ने कहा- "क्यों? अभी तो सबने कहा है कि सब कुछ भगवान का ही बनाया हुआ है फिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
विद्यार्थी ने कहा- "सर, मैं आपसे छोटे-छोटे दो सवाल पूछता हूँ। फिर उसके बाद आपकी बात भी मान लूँगा।"
प्रोफेसर ने कहा- "तुम बहुत सवाल करते हो। खैर पूछो।"
विद्यार्थी ने पूछा- "सर, क्या दुनिया में ठण्ड का कोई वजूद है?"
प्रोफेसर ने कहा- "बिल्कुल है। सौ फीसदी है। हम ठण्ड को महसूस करते हैं।"
विद्यार्थी ने कहा - "नहीं सर, ठण्ड कुछ है ही नहीं। यह असल में गर्मी की अनुपस्थिति का अहसास भर है। जहाँ गर्मी नहीं होती, वहाँ हम ठण्ड को महसूस करते हैं।"
प्रोफेसर चुप रहे। विद्यार्थी ने फिर पूछा- "सर क्या अँधेरे का कोई अस्तित्व है?"
प्रोफेसर ने कहा- "बिल्कुल है। रात को अँधेरा होता है।"
विद्यार्थी ने कहा- "नहीं सर! अँधेरा कुछ होता ही नहीं। जहाँ रोशनी नहीं होती वहाँ अँधेरा होता है।"
प्रोफेसर ने कहा- "तुम अपनी बात आगे बढ़ाओ।"
विद्यार्थी ने फिर कहा- "सर आप हमें सिर्फ लाइट एण्ड हीट (प्रकाश और ताप) ही पढ़ाते हैं। आप हमें कभी डार्क एण्ड कोल्ड (अँधेरा और ठण्ड) नहीं पढ़ाते। फिजिक्स में ऐसा कोई विषय ही नहीं। सर, ठीक इसी तरह ईश्वर ने सिर्फ अच्छा-अच्छा बनाया है। अब जहाँ अच्छा नहीं होता, वहाँ हमें बुराई नजर आती है। पर बुराई को ईश्वर ने नहीं बनाया। ये सिर्फ अच्छाई की अनुपस्थिति भर है।"
दरअसल दुनिया में कहीं भी बुराई नहीं है। अच्छे, सच्चे और ईमानदार लोग बहुत हैं, उन्हीं की बदौलत यह दुनिया चलती है। बुराई का शौर अधिक होता है, इसलिए लगता है कि बुराई अधिक है। इसी प्रकार दुख का एक-एक पल हमें वर्ष के बराबर लगता है, इसीलिए हम कहते हैं कि दुख और परेशानियाँ जीवन में अधिक समय तक रहती हैं। जबकि सुख भी शीतल वायु के समान जीवन में आता रहता है और आह्लादित करता रहता है।
ईश्वर में हमारी आस्था जितनी अधिक होती है उतने ही हम प्रसन्न रहते हैं और उसकी कमी होने पर निराशा घेर लेती है। उसके प्रति सच्चे मन से समर्पण किया तो जीवन खुशहाल हो जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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